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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १३६ ] श्री विपाक सूत्र - [दूसरा अध्याय सर्वज्ञकल्प अर्थात् सव जानातीति सर्वज्ञः, विश्व के भूत् भविष्यत् और वर्तमान कालीन समस्त पदार्थों का यथावत् ज्ञान रखने वाला, के समान हैं । कहा भी है कि दूसरों के पूछने पर यह छद्मस्थ (सम्पूर्ण ज्ञान से वञ्चित ) गौतम स्वामी संख्यातीत भवों-जन्मों का कथन करने वाले और अतिशय ज्ञान वाले हैं. फिर उन्हों ने अर्थात् अनगार गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से यह प्रश्न - कि भदन्त ! यह व पुरुष पूर्वभव में कौन था ? आदि क्यों पूछा? सारांश यह है कि छद्मस्थ भगवान् गौतम जबकि दूसरों के पूछने पर संख्यातीत भवों का वर्णन करने वाले अथ च संशयातीत माने जाते हैं तो फिर उन्हों ने भगवान् के सन्मुख अपने संशय को समाधानार्थ क्यों रखा ? उत्तर - उपरोक्त प्रश्न का समाधान यह है कि शास्त्र में गौतम स्वामी के जितने गुण वर्णन किये गये हैं उन में वे सभी गुण विद्यमान हैं, वे सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता भी हैं और संशयातीत भी हैं। ये सब होने पर भी गौतम स्वामी अभी छद्मस्थ हैं. छद्मस्थ होने से उन में अपूर्णता का होना असंभव नहीं अर्थात् छद्मस्थ में ज्ञनातिशय होने पर भी न्यूनता कमी रहती ही है, इसलिये कहा है कि छद्मस्थ नाभोग (परिपूर्णता अथवा अनुपयोग नहीं है, यह बात नहीं है. तात्पर्य यह है कि छद्मस्थ का श्रात्मा विकास की उच्चतर भूमिका तक तो पहुँच जाता परन्तु वह श्रात्मविकास की पराकष्ठा को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अभी उस में ज्ञान को श्रावृत करने वाले ज्ञानावरणीय कर्म की सत्ता विद्यमान है, जब तक ज्ञानावरणीय कर्म का समूल नाश नहीं होता, तब तक आत्मा में तद्गत शक्तियों का पूर्ण विकास नहीं होता इसलिये चतुर्विध ज्ञान सम्पन्न होने पर भी गौतम स्वामी में छद्मस्थ होने के कारण उपयोगशून्यता का श्रंश विद्यमान था जिस का केवली - सर्वज्ञ सर्वथा अभाव होता है । · एक बात और है कि यह नियम नहीं है कि अनजान ही प्रश्न करे जानकार न करे। जो जानता है। वह भी प्रश्न कर सकता है । कदाचित् गौतम स्वामी इन प्रश्नों का उत्तर जानते भी हों तब भी प्रश्न करना संभव है । आप कह सकते हैं कि जानी हुई बात को पूछने को क्या अवश्यकता है ? इस का उत्तर यह है कि उस बात पर अधिक प्रकाश डलवाने के लिये अपना बोध बढ़ाने के लिये, अथवा जिन लोगों को प्रश्न पूछना नहीं आता, या जिन्हें इस विषय में विपरीत धारणा हो रहो है उन के लाभ के लिये, उन्हें बोध कराने के लिये गोतम स्वामी ने यह प्रश्न पूछा है । भले ही गोतम स्वामी उस प्रश्न का समाधान करने में समर्थ होंगे तथापि भगवान् के मुखारविन्द से निकलने वाला प्रत्येक शब्द विशेष प्रभावशाली और • प्रमाणिक होता है, इस विचार से ही उन्हों ने भगवान के द्वारा इस प्रश्न का उत्तर चाहा है । . तात्पर्य यह है कि गौतम स्वामी ज ́ हुए ज्ञान में विशदता लाने के लिये, शिष्यों को ज्ञान लिये यह प्रश्न कर सकते हैं। भी अनजानों की वकालत करने के लिये, अपने देते के लिये और अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न कराने अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न कराने का अर्थ यह है -- मान लीजिये किसी महात्मा ने किसी जिज्ञासु को किसी प्रश्न का उत्तर दिया, लेकिन उस जिज्ञासु को यह संदेह उत्पन्न हुआ कि इस विषय में भगवान् न मालूम क्या कहते १ उस ने जा कर भगवान से वही प्रश्न पूछा । भगवान् ने भी वही उत्तर दिया। श्रोता को उन महात्मा के बचनों पर प्रतीति हुई । इस प्रकार अपने वचनों की दसरों को प्रतीति कराने के लिये भी स्वयं प्रश्न किया जा सकता है। ।। इसके अतिरिक्त सूत्र रचना का क्रम गुरु शिष्य के सम्वाद में होता है। अगर शिष्य नहीं होता तो. गुरु स्वयं शिष्य बनता है । इस तरह सुधर्मा स्वामी इस प्रणाली के अनुसार भी गौतम स्वामी और भगवान् , For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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