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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित । [१३७ महावीर के प्रश्नोत्तर करा सकते हैं । अस्तु, निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि गौतम स्वामी ने उक्त कारणों में से किस कारण से प्रेरित हो कर प्रश्न किया था। __ श्री गौतम गणधर के उक्त प्रश्न का श्रमण भगवान् महावीर ने जो उत्तर दिया, अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं मूल--'एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे हथिणाउरे नाम नयरे होत्था, रिद्ध० । तत्थ णं हत्थिणाउरे णगरे सुणंदे णामं राया होत्था महया हि० । तत्थ णं हत्थिणाउरे नगरे बहुमझदेसभाए महं एगे गोमंडवे होत्था, अणेगखंभसयसंनिविटे, पासाइए ४, तत्थ णं वहवे णगरगोरुवा णं सणाहा य अणाहा य णगरगावीश्रो य णगरवलोवद्दा य णगरपड्डियाओ य णगरवसभा य पउरतणपाणिया निब्भया निरुवसग्गा सुहंसुहेणं परिवसंति । - पदार्थ-एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । गोतमा !- हे गौतम ! । तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समरणं-उस समय में । इहेत्र-इसी । जंबुद्दीवे दीव-जम्बू द्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वासे- भारतवर्ष में । हत्थिाणाउरे-हस्तिनापुर । नाम-नामक । गरे-नगर । होत्था-था। रिद्ध०-अनेक विशाल भवनों से युक्त, भयरहित तथा धनधान्यादि से भरपूर था। तत्य णं हत्थिाणाउरे णगरे-उस हस्तिनापुर नगर में । सुणंदे - सुनन्द । णाम-नाम का । महया हि०-महाहिमवान् -हिमालय के समान महान राया-राजा । होत्था-था । तत्थ णं हथिणाउरे णगरे-उस हस्तिनापुर नगर के । बहुमज्भदेसभाए-लग भग मध्य प्रदेश में । एगे-एक । महंमहान । अणेगखभसयसंनिविठू-सैंकड़ों स्तम्भों से निर्माण को प्राप्त हुआ। पासाइए ४-मन प्रसन्न करने वाला, जिस को देखते २ आखें नहीं थकती थीं, जिसे एक बार देख लेने पर भी पुनदर्शन की लालसा बनी रहती थी, जिस की सुन्दरता दर्शक के लिये देख लेने पर भी नवीन ही प्रतिभासित होती थी। गामंडवे-गोमण्डप - गोशाला । होत्था--था । तत्थ णं-वहां पर । बहवे-अनेक । णगरगोरुवा-नगर के गाय बैल आदि चतुष्पाद पशु । णं-वाक्यालंकारार्थक है। सणाहा य-सनाथजिस का कोई स्वामी हो । अणाहा य-और अनाथ-जिस का कोई स्वामी न हो, पशु जैसे किणगरगावीओ य-नगर की गौयें । गरबलीवदा य-नगर के बैल । णगरपड्डियाओ य-नगर की छोटी गाय या भैंसें, पंजाबी भाषा में पड्डिका का अर्थ होता है--कट्टिये या बन्छियें । णगरवसभा-नगर के सांढ । पउरतणपाणिया-जिन्हे प्रचुर घास और पानी मिलता था। निब्भयाभय से रहित । निरुवसग्गा-उपसर्ग से रहित । सुहंसुहेणं-सुख -पूर्वक । परिवसंति-निवास करते थे । (१) छाया -एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे हस्तिनापुरं नाम नगरमभूत् ऋद्धः । तत्र हस्तिनापुरे नगरे सुनन्दो नाम राजा बभूव महा हि । तत्र हस्तिनापुरे नगरे बहुमध्यदेशभागेऽत्र महानेको गोमण्डपो बभूव । अनेकस्तम्भशत – सन्निविष्ट: प्रासादीयः ४। तत्र बह्वो नगरगोरूपाः सनाथाश्च अनाथाश्च नगरगव्यश्च नगरबलीवर्दाश्च नगरपडिकाश्च नगरवृषभाश्च प्रचुरतृणपानीयाः निर्भयाः निरुपसर्गाः सुखसुखेन परिवसंति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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