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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३९४) वसंतराजशाकुने-चतुर्दशो वर्गः। सिद्ध्यै सदा सर्वसमीहितानां स्याल्लोमशीदर्शनमात्रमेव ॥ राजप्रसादं कथयंत्ययुग्मा दृष्टा ध्रुवं लोमशिकाश्च पृष्ठे ॥४४ ॥ सव्यापसव्या च गतिः सदासां नृपादरस्त्रीधनलाभहेतुः ॥ खिखीति शब्दादपरो विरावो दीप्तो भवेल्लोमशिकाप्रयुक्तः ॥४५॥ ॥ टीका॥ स्य निशायां पश्चिमायां शृगालशब्दः उच्चाटनार्थ भवति प्राच्या पूर्वस्या भयाय भवति । उत्तरतः शिवाय भवति । अवाच्या दक्षिणस्यां भयनाशाय स्यात् ॥४३॥ ॥ इति शृगालः॥ सिद्धयै इति ॥ लोमशीदर्शनमात्रमेव सर्वसमीहितानां सिद्ध्यै भवति । अयु. ग्मलोमशिकाश्च पृष्ठे दृष्टा राजप्रसादं कथयति ॥ ४४ ॥ सव्यति ॥ आसां लोमशिकानां सव्यापसव्या गतिः वामदक्षिणगमनं नृपादरस्त्रीधनलाभहेतुः नृपादरो राजसन्मानः स्त्री योषित् धनं द्रव्यं एतेषामितरेतरद्वंद्वः तेषां यो लाभः प्राप्ति तस्य हेतुः कारणं भवति।तथाखिखीति शब्दादपरो विराव लोमशिकाप्रयुक्तः दीप्तो भवेत ॥भाषा ॥ शृगालको शब्द उच्चाटनके अर्थ है. जो पूर्वदिशामें बोले तो भयके अर्थ और उत्तरमें बोले तो कल्याणके अर्थ दक्षिणमें शृगालको शब्द भयके नाशके अर्थ जाननो ॥ ४ ॥ ॥ इति शृगालः ॥१४॥ सिद्धय इति ॥ लोमशीको दर्शनही सर्व मनोरथकी सिद्धि करै है. जो लोमशी ओना पीठपीछे दीखै तो निश्चयकर राजाको अनुग्रह होय. लोमशीको दर्शन और गमन दोनों शुभ हैं ॥ ४४ ॥ सव्यति ॥ इन लोमशानको वामदक्षिण गमन राजाको सन्मान, और स्त्री धन इनको लाभ करावे. जो खिखि शब्दसूं दूसरो शब्द बोले तो दीप्तशब्द जाननो. जो लोमशी काली पूंछकी होय दक्षिणभागमें आवे तो भयकू आदिले जे कार्य उनमें शुभ है. जो सुफेद पूंछकी होय तो राजाकी सेवा चाकरीकं आदिले जे कार्य तिनमें दक्षिणभागकी शुभ है. जो ये वामभागमें आवे तो अशुभ करे. युद्धादिकनमें जिनकू वामभागमें आवे उनके मध्यमें जो अधिपति होय वाको नाश करै लोमशीक लूंकडी कहैहैं ॥ ४५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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