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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३८८) वसंतराजशाकुने-चतुर्दशोःवर्गः। प्रशस्यते दर्शनकीर्तनाभ्यां ग्राम्यस्तथारण्यगतो वराहः॥ शस्तोऽधिकं कर्दमलिप्तगात्रो विशुष्कपंकावयवोऽतिनिंद्यः।।२७। ॥ इति वराहः॥ वामस्वरा वामगताः प्रवासे तद्वैपरीत्यानखिनः प्रवेशे ॥ भवं ति शस्ताः प्रतिषेधकास्तु पृष्टे पुरस्तादपि भाषमाणाः॥२८॥ नानुव्रजंतो नखिनः प्रशस्ता न सम्मुखं चापि समापतंतः ॥ अग्रेसराः शत्रुवोधतानां भवत्यवश्यं विजयाय पुंसाम् ॥२९॥ .. ॥ टीका॥ प्रशस्यत इति ॥ ग्राम्यस्तथाऽरण्यगतः वराहः दर्शनकीर्तनाभ्यां प्रशस्यते तथापि कर्दमलिप्तगात्रः अधिकं शस्तः विशुष्कपंकावयवः अतिनिद्यः स्यात्॥२७॥ ॥ इति वराहः॥ वामेति ॥ प्रवासे वामस्वराः वामगताः प्रवेशे तद्वैपरीत्याच्च नखिनः शस्त भवंति तथा पृष्ठे पुरस्तादपि भाषमाणाः प्रतिषेधकाः स्युः ॥ २८ ॥ नान्विति । अनुव्रतो नखिनः प्रशस्ता न भवंति । संमुखं चापि समापतंतःन प्रशस्ताः शत्रुव भागमें गमन शब्द शुभ है. छिकारक, रुं, कर्कट, पृषत, चित्तल, रोहित ये नाम मृग भेदमें है हैं ॥ २६ ॥ ॥ इति मृगाः॥९॥ ॥ भाषा ।। प्रशस्यत इति ॥ ग्रामको शूकर होय वा वनको शूकर होय इनको दर्शन नामको उच्चारण शुभ है. जो कीचमें व्हीस रह्यो होय पनगीलो होय तो बहुत अधिक शुभ जाननो. जो कीचके सनो सूखो होय तो अति निदाके योग्य है ॥ २७ ॥ ॥ इति वराहः ॥ १० ॥ वामेति ॥ गमन नखवान् पशु वामस्वर वाममें गमन करतो होय और प्रवेशमें दक्षिणस्वर दक्षिण गमन होय तो शुभ. और पीठपीछे अगाडी बोले तो निषेध कर्ता जाननो ।। २८ ॥ नान्विति ॥ नखी पशू गमन कर्ताके पीछे गमन करे तो और संमुख भावै तो शुभ नहीं. और शत्रुनके वधमें उद्युक्त होय रहे होंय उनके अगाडी आवे तो For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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