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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुष्पदानां प्रकरणम्. (३८७) पुरो व्रजन्वक्तिमृगोऽतिदूरं विदेशयानं कुशलं च यातुः॥ प्रदक्षिणीकृत्य विवृत्य पश्यन्मृगीद्वितीयोऽपि मृगोऽर्थसिद्धयै॥ २४ ॥ आकारशब्दादपरं विरावं क्षुतं च कुर्वत्र हितः कुरंगः ॥ युद्धाय युद्धोद्यतचित्तवृत्तिः सौख्याय संजातरतप्रवृत्तिः॥ २५ ॥ छिक्कारकाणां रुरुकर्कटानां यानं रुतं दक्षिणतः प्रशस्तम् ॥ वामं पृषचित्तलरोहितानां तथा परेषां खुरिणां बहूनाम् ॥ २६॥ ॥ इति मृगाः॥ ॥ टीका ॥ पृष्ठे लाभकर स्यात्॥२३॥ पुर इति।मृगः पुरो व्रजन्यातुरतिदूरं विदेशयानं कुशलं च वक्ति । तथा प्रदक्षिणीकृत्य विवृत्येति नेत्रे प्रसार्य पश्यन् मृगीद्वितीयः मृगोपि अर्थसिद्धयै स्यात् ।। २४ ॥ आकारेति ॥ आकारशब्दादपरं विरावं क्षुतं च कुर्वन्कुरंगो न हितः युद्धोद्यतचित्तवृत्तिः युद्धाय स्यात् । संजातरतप्रवृत्तिः सौख्याय स्यात् ॥ २५॥ छिक्कारकाणामिति ॥ छिक्कारकाणां रुरूणां कर्कटानां मृगविशेषाणां यानं गमनं रुतं च दक्षिणेन प्रशस्तं स्यात् । पृषच्चित्तलरोहितानां तथा परेषां बुरिणां बहुना वामं गमनं रुतं च प्रशस्तं स्यात् ॥ २६ ॥ ॥ इति मृगाः ॥ ॥ भाषा॥ करतो होय तो कार्यको निषेध जाननो. जो मूत्र पुरीष करें तो भय करै, जो मार्गके मध्यमें वा अप्रभागमें मृग देखते होय तो नाश वा क्षतके अर्थ जाननो. पीठपीछे देखे तो लाभ करै ॥ २३ ॥ पुर इति ॥ जो मृग अगाडी गमन करे तो गमनकर्ता• अति दर विदेश गमन और कुशल करै. जो मृगी प्रदक्षिगा हायकर नेत्र फाडकरके देखे तैसेही मृग भी देखै तो अर्थ सिद्धिकरै ॥ २४ ॥ आकाति. ॥ आकारशब्दते और शब्द वा छौंक लेवे तो मृग हितकारी नहीं जाननो. और युद्ध करबे जाको चित्त लगरह्यो होय तो युद्ध करावे. संभोगमें जाकी प्रवृत्ति होय तो सौख्य करै ॥ २५ ॥ छिकारकाणामिति ॥ छिकारकनको रुरुनको कर्कटनको गमन शब्द दोनों दक्षिणभागमें शुम हैं. और पृषत, चितल, रोहित इनको और जे खुरवारे बहुतसे जीव हैं तिनको वाम For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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