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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरुते गतिप्रकरणम् । ( १३९ ) उत्त्य या दर्दुरवत्प्रयाति पथि स्खलंती खलिता मता सा। तारापि भूत्वा तरुकोटरादौ निलीयते सा पुनरंधतारा ॥ ॥ ११३ ॥ गोमूत्रिकासर्पवदंबरे या वक्रं व्रजेत्सा खलु वक्रतारा ॥ सा दूरतारा कथितेह पूर्वं तारा भवेद्याति ततोऽतिदूरम् ।। ॥ ११४ ॥ लुटत्यवन्यां गुलिकेव तारा या याति पद्भ्यां गुलिकर्मता सा ॥ गत्वोर्द्धदेशं गगने ततो या तारा भवेत्सा कथितोर्द्धतारा ॥ ११५ ॥ अच्छिन्नवेगा शरवत्प्रयाति निवृत्य नायाति च कांडतारा || पृष्टप्रदेशेन नरस्य वामादवा ममागच्छति पृष्ठतारा ॥ ११६ ॥ ॥ टीका ॥ ति । अर्धपथप्रदेशात्पुनर्निवर्तेत सा कपाटसंज्ञा स्यात् ॥ ११२ ॥ उत्कुत्येति ॥ या दर्दुरवदुत्पत्य रखलंती प्रयाति सा स्खलिता मता । या तारा भूत्वापि तरुकोटरादौ निलीयते सा अंधा भवति ॥ ११३ ॥ गोमूत्रिकेति ॥ या गोमूत्रिकावत्सवच्च अंबरे वक्रं व्रजति सा खलु निश्चयेन वक्रतारा । या पूर्व तारा भवेत्ततोऽतिदूरं याति सा इह दूरतारा कथिता प्रतिपादिता ॥ ११४॥ लुटतीति ॥ या गुलिकेक पद्धयां लुटंती अवन्यां याति सा गुलिकर्मता । या ऊर्द्धदेशं गगने गत्वा ततः तारा भवेत्सा ऊर्द्धतारा ॥ ११५ ॥ अच्छिन्नेति । या शरवद्वाणवदच्छिन्नवेगा प्रयाति ततो निवृत्य नायाति सा कांडतारा । या पृष्ठप्रदेशे वामादद्वाममागच्छति ॥ भाषा ॥ छीन हो ताकी कपाटसंज्ञा है ॥ ११२ ॥ उत्प्लुत्येति || टककीनाई उछल करके गिरत पडत चले बाकुं स्खलिता कहै हैं, और जो तारा दीखके फिर वृक्षकी कोटरादिकमें लीन होजाय बाकी अंधा संज्ञा है ॥ ११३ ॥ गोमूत्रिकेति ॥ जो तारा जैसे मार्ग गो मूत्र करे है, जैसे सर्प टेटो चलैहै तैसे आकाशमें टेढी चढे वाकू त्रक्रतारा कहें हैं, और जो प्रथम दीखकरके फिर अतिदूर चली जाय वाकूं दूरा कहै हैं ।। ११४ ॥ लुठतीति ॥ जो गुलिकाकीसनाई पाँचकर लोटती हुई पृथ्वी में चले वाकूं गुलिकी कहे हैं और जो तारा ऊंची आकाशमें जायकरके दीखे ताऊं ऊर्ध्वतारा कहे हैं ॥ ११५ ॥ अच्छिन्नेति ॥ जो तारा बाणकीसी नाई अखंड वेग चली जाय और पीछी बगदके नहीं आवे वाकूं कांडतारा कहे हैं, और जो पीठपीछे वामभागसूं जेमने भागकूं "गमन करे वा For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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