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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक यति 'हर्षकीर्तिसूरि' की 'धातुतरंगिणी' के पाठ से ज्ञात होता है कि उन्होंने बादशाह अकबर की सभा में किसी महापण्डित को पराजित किया था, जिसके सम्मान स्वरूप उन्हें बादशाह अकबर की ओर से रेशमी वस्त्र, पालकी और ग्राम आदि भेंट में प्राप्त हुए थे। वे जोधपुर के हिन्दू नरेश मालवदेव द्वारा भी सम्मानित थे। इतना ही नहीं इनके गुरु पद्ममेरु और प्रगुरु आनन्दमेरु को क्रमशः अकबर के पिता हुमायूँ और पितामह बाबर की राजसभा में प्रतिष्ठा प्राप्त थी। __पद्मसुन्दरगणि ने '(अकबरसाहि)-शृंगार-दर्पण' की रचना वि.सं. 1626 के आसपास की है तथा श्वेताम्बराचार्य हीरविजय की बादशाह अकबर से भेंट वि.सं. 1639 में हुई थी, उस समय पद्मसुन्दरगणि का स्वर्गवास हो चुका था। अतः पद्मसुन्दरगणि का समय विक्रम की 17वीं (ईसा की 16वीं का उत्तरार्द्ध) शताब्दी मानना उपयुक्त होगा। पद्मसुन्दरगणि ने साहित्य, नाटक, कोष, अलंकार, ज्योतिष और स्तोत्र विषयक अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान् रायमल्ल से उनकी प्रगाढ़ मैत्री थी। इसलिए उन्होंने कुछ ग्रन्थों की रचना रायमल्ल के अनुरोध पर भी की है। उनके प्रमुख ग्रन्थ निम्न प्रकार है-रायमल्लाभ्युदयकाव्य, यदुसुन्दर महाकाव्य, पार्श्वनाथचरित, जम्बूचरित, राजप्रश्नीय नाट्यपदभंजिका, परमतव्यवच्छेदस्याद्वादद्वात्रिंशिका, प्रमाणसुन्दर, सारस्वतस्वरूपमाला, सुन्दर प्रकाशशब्दार्णव, हायन-सुन्दर, षड्भाषागर्भितनेमिस्तव, वरमंगलिकास्तोत्र, भारतीस्तोत्र, भविष्यदत्तचरित और ज्ञानचन्द्रोदय नाटक, आदि। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने इनकी केवल दो ही रचनाओं का उल्लेख किया है-भविष्यदत्त-चरित और रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य। जबकि पं. नाथूराम प्रेमी और डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी ने इनकी अन्य कृतियों का भी सप्रमाण उल्लेख किया है। अकबरसाहिभंगारदर्पण : प्रस्तुत अलंकारशास्त्र-विषयक ग्रन्थ मुगल बादशाह अकबर की प्रशंसा में रचा गया है। इसके प्रत्येक उल्लास के अन्त में अकबर प्रशस्ति-पद्यों की रचना की गयी है। अकबरसाहिभंगारदर्पण की तुलना दशरूपक और नाट्यदर्पण से की जा सकती है, क्योंकि इसमें नाट्यशास्त्रीय तत्त्वों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। चार उल्लासों में विभाजित इस ग्रन्थ में कुल 345 पद्य हैं। सिद्धिचन्द्रगणि ये अपने समय के महान् टीकाकार और साहित्यकार थे। ये तापगच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्रगणि के शिष्य थे। भानुचन्द्रगणि और सिद्धिचन्द्रगणि को मुगल बादशाह अकबर के दरबार में समान रूप से सम्मान प्राप्त था। सिद्धिचन्द्रगणि शतावधानी थे। उनके 616 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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