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________________ ६३४ तत्त्वार्थ सूत्रे योच्छायो बोध्यः । शिखरीनामवर्षधरपर्वतः पुन-हरण्यवतस्योत्तरतः-ऐरवतवर्षस्य च दक्षिणतो वर्तते सचैकशतयोजनोच्छ्रायोऽवसेयः । सर्वेषां खलु पर्वतानामुच्छायस्य चतुर्थो भागोऽवगाहो भवतीति बोध्यम् ॥२३॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व भरतादिसप्तवर्षाणां प्ररूपणं कृतम् , सम्प्रति-तेषां सप्तानामपि क्षेत्राणां विभागकारकान् हिमवदादिषड्वर्षधरपर्वतान् प्ररूपयितुमाह-"तविभायगा पुव्वापरायया चुल्ल हिमवंत-महाहिमवंत-निसढ-नीलवंत-रुप्पि-सिहरिणो छ वासहरपव्यया-" इति । तद् विभाजकाः-तेषां भरतादिसप्तक्षेत्राणां स्वाभाविकसन्निवेशितया विभक्तारः विभागकर्तारः पूर्वापरायताः पूर्वापरकोटिभ्यां लवणजलधिमवगाढाः लवणसमुद्रस्पर्शिनः, क्षुद्रहिमवान्-महाहिमवान्–निषधः-नीलवान्-रुक्मी-शिखरीचेत्येवं षट् तावत्-वर्षधरपर्वताः। वर्षाणां-भरतादिसप्तक्षेत्राणां धारकत्वाद् विशिष्टतया व्यवच्छेदकारित्वात वर्षधरास्ते पर्वताः अनादिकालव्यवस्थिता वर्तन्ते । ____तथाच-पूर्वोक्तानां सप्तानामपि भरतादिवर्षाणां विभागकर्तारः खलु हिमवान्–महाहिमवान्निषधो-नीलवान्-रुक्मी-शिखरीचे त्येते षड् वर्षधराः पर्वतास्सन्तीति सञ्जातम् । तत्र-भरतस्य हैमवतस्य च वर्षस्य मध्ये व्यवस्थितत्वात् क्षुद्रहिमवान् खलु-भरत हैमवतयोविभागं करोति । महाहिमवान्-खलु हैमवत-हरिवर्षस्योर्विभागकारी वर्तते । निषधस्तावत्-हरिवर्षमहाविदेहयोर्विभाजकोऽस्ति । नीलवान् पर्वतस्तु महाविदेह-रम्यकवर्षयोविभाजको वर्तते । रुक्मीपर्वतस्तु रम्यपर्वत हैरण्यवत से उत्तर में और ऐरवतवर्ष से दक्षिण में है। उसकी ऊँचाई एक सौ योजन की है । सभी पर्वतों का अवगाह उनकी ऊंचाई का चौथाई भाग है ॥२३॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-इससे पूर्व भरत आदि सात क्षेत्रों का निरूपण किया गया है। अब उन सातों क्षेत्रों का विभाग करने वाले हिमवान् आदि छह वर्षधर पर्वतों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं ___ उन भरत आदि सातों क्षेत्रों का अपनी स्वाभाविक रचना द्वारा विभाग करने वाले, पूर्व से पश्चिम तक लम्बे, अपने पूर्ववर्ती और पश्चिमवती छोरों से लवणसमुद्र को स्पर्श करने वाले क्षुद्रहिमवान् , महाहिमवान् , निषध, नीलवान् , रुक्मी और शिखरी नामक छह वर्षधर पर्वत हैं। भरत आदि सात वर्षों के विभाजक होने से अर्थात् उन्हें जुदा करने वाले होने से वे पर्वत वर्षधर कहलाते हैं । वे अनादिकाल से हैं। आशय यह है कि पूर्वोक्त भरत आदि सातों क्षेत्रों का विभाग करने वाले हिमवान् , महाहिमवान् , निषध, नीलवान्, रुक्मी और शिखरी नामक छह वर्षधर पर्वत हैं । भरतवर्ष और हैमवतवर्ष के मध्य में स्थित होने के कारण क्षुद्रहिमवान् पर्वत भरत और हैमवतवर्ष का विभाग करता है । महाहिमवान् पर्वत हैमवत और हरिवर्ष का विभाजक है । निषध पर्वत हरिवर्ष और महाविदेह की सोमा को पृथक करता है । नीलवान् पर्वत महाविदेह और रम्यकवर्ष को विभक्त करता है । रुक्मीपर्वत रम्यकवर्ष और हैरण्यवतवर्ष को अलहदा करता है और शिखरिपर्वत हैर
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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