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________________ - दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. २३ षड्वर्षधरपर्वतनिरूपणम् ३३ क्षुल्लहिमवान्-महाहिमवान्–निषधः-नीलवान्-रुक्मी-शिस्त्ररीचेत्येवं षटसंख्यका वर्षधरपर्वता:---भरत-हैमवत-हरि-महाविदेह-रम्यक-हैरण्यवत-ऐरवतवर्षाणां पूर्वोक्तसप्तक्षेत्राणां धारकपर्वताः सन्ति । वर्षाणां भरतादीनां सप्तानां क्षेत्राणां विभागनिमित्तत्वाद् वर्षधरा स्ते षट्पर्वता व्यपदिश्यन्ते हिमवदादयश्चाऽनादिकालप्रवृत्ता अनिमित्तकसंज्ञाः सन्ति, किन्तु-भरतादिवर्षविभागहेतुत्वाद् वर्षधरपर्वता इत्युच्यन्ते । तत्र-क्षुद्रहिमवान् तावद्-भरतवर्षस्य-हैमवतवर्षस्य च सीमायां व्यवस्थितो वर्तते, स खलु-क्षुद्रहिमवान् वर्षधरपर्वतः शतयोजनोच्छ्रायोऽस्ति । महाहिमवान् खलु-हैमवतस्य-हरिवर्षस्य च विभाजको योजनशतद्वयोच्छायो वर्तते । निषधो नामवर्षधरपर्वतस्तु महाविदेहस्य दक्षिणतो हरिवर्षस्य चोत्तरतस्तयोविभाजकत्वात् तद् द्वयमध्यवर्तीयोजनशतचतुष्टयोच्छ्रायः खलु वर्तते। नीलवान् पर्वतस्तावद्-महाविदेहस्योत्तरतो रम्यकवर्षस्य च दक्षिणतो वर्तते तद् द्वयवर्षविभाजकतया तयोर्मध्येऽस्ति, सचापि-योजनशतचतुष्टयोच्छ्रायोऽवसेयः । रुक्मिपर्वतश्च-रम्यकवर्षस्योत्तरतो हैरण्यवतस्य च दक्षिणतो वर्तते, स च-योजनशतपर्वतों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं जम्बूद्वीप में स्थित भरतवर्ष आदि क्षेत्रों का विभाजन करने वाले, पूर्व से पश्चिम लम्बे तक पूर्व-पश्चिम लवणसमुद्र तक फैले हुए, अपने पूर्व एवं पश्चिम छोरों से लवणसमुद्र को स्पर्श करने वाले क्षुद्र हिमबान् , महाहिमवान् , निषध, नील, रुक्मि और शिखरी नामक छह वर्षधर पर्वत हैं। अर्थात् भरत, हैमवत, हरि,, महाविदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरवत इन सात क्षेत्रों के धारक ये छह पर्वत हैं। भरत आदि सात क्षेत्रों को विभक्त करने के कारण ये छह पर्वत वर्षधर कहलाते हैं। इन पर्वतों के जो हिमवान् आदि नाम हैं, वे अनिमित्तक हैं, अर्थात् किसी विशेष कारण से नहीं हैं; ये पर्वत और इनके उल्लिखित नाम भी अनादिकाल से चले आ रहे हैं। हाँ, भरत आदि वों के विभाजक होने से इन्हें वर्षधर कहते हैं । क्षुद्रहिमवान् पर्वत भरतवर्ष और हैमवतवर्ष की सीमा पर स्थित है । उसको ऊँचाई सौ योजन की है । महाहिमवान् पर्वत हैमवत और हरिवर्ष को विभक्त करता है । उसकी ऊँचाई दो सौ योजन की है । निषध नामक वर्षधर पर्वत महाविदेह से दक्षिण में और हरिवर्ष से उत्तर में है । इन दोनों के मध्य में है अतएव दोनों का विभाजक है । इसकी ऊँचाई चार सौ योजन की है । नीलवान् पर्वत महाविदेह से उत्तर में और रम्यकवर्ष से दक्षिण में है। वह इन दोनों क्षेत्रों के मध्य में होने से इनको विभक्त करता है । यह पर्वत भी चार सौ योजन ऊँचा है। रुक्मिपर्वत रम्यकवर्ष से उत्तर में और हैरण्यवत से दक्षिण में है । दो सौ योजन ऊँचा है । शिखरि
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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