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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. २३ षड्वर्षधरपर्वतनिरूपणम् ६३५ कवर्ष-हरण्यवतयोविभाजकः शिखरीनामा षष्टः पर्वतः पुनर्हरण्यवतै-रवतयोविभक्तो वर्तते, एभिश्च षभिः कुलाचलैर्विभक्ताः खलु-भरतादयः सप्तवर्षाः क्षेत्ररूपा जम्बूद्वीपे सन्ति । सम्प्रति-तेषां खलु षण्णां क्षुद्रहिमवदादिकुलपर्वतानामवगाहोच्छ्रायाः प्रतिपाद्यन्ते तत्रक्षुद्रहिमवान् खलु योजनशतोच्छ्रायो वर्तते सर्वेषाञ्च–पर्वतानामुच्छ्रायचतुर्थभागस्याऽवगाहत्वेन क्षुल्लहिमवान् पञ्चविंशतियोजनान्यवगाढो वर्तते महाहिमवान् वर्षधरपर्वतस्तु-तद्विगुणावगाहोच्छ्रायत्वात् योजनशतद्वयोच्छ्रायः पञ्चाशद्योजनान्यवगाढश्च भवति । निषधपर्वतश्च-तद्विगुणावगाहोच्छायतया योजनशतचतुष्टयोजनोच्छ्रायः, शतयोजनान्यवगाढश्च भवति । नीलवानपि पर्वतो योजनशतचतुष्टयोच्छ्राय एव वर्तते, शतयोजनान्यवगाढश्च रुक्मी पर्वतस्तु योजनशतद्वयोच्छ्रायः, पञ्चाशद्योजनान्यवगाढश्च । शिखरी खलु कुलाचलःएकशतशोजनोच्छ्रायः, पञ्चविंशति योजनान्यवगाढश्च वर्तते । ___ भरतक्षेत्रमध्यवर्ती वैताढयपर्वतः खलु-दक्षिणोत्तरार्धविभागकारी पूर्वापरायत उभयतो लवणसमुद्रमवगाढो विद्याधराघिवासभूमिः पञ्चाशत्पष्टिनगरयुक्तदक्षिणोत्तरश्रेणिद्वयविभूषितो गुहाण्यवत और ऐरवत क्षेत्र की सीमाओं को अलग करता है। इन छह कुलपर्वतों से जम्बूद्वीप में स्थित भरत आदि सात वर्ष विभक्त हो गए हैं। - अब क्षुद्रहिमवान् आदि छहों कुलाचलों के अवगाह और ऊँचाई का प्रतिपादन करते हैंक्षुद्रहिमवान् पर्वत सौ योजन ऊँचा है । सभी पर्वतों का अवगाह उनकी ऊँचाई का चतुर्थाश होता है, अतएव क्षुदहिमवान् का अवगाह पच्चीस योजन है। ____ महाहिमवान् पर्वत क्षुद्रहिमवान् से दुगुना ऊँचा और अवगाह वाला है। इस प्रकार उसकी ऊँचाई दो सौ योजन की अवगाह पचास योजन का है। निषधपर्वत उससे भी दुगुना अवगाह और ऊँचाई वाला है, अतः उसकी ऊँचाई चार सौ योजन की और अवगाह सौ योजन का है। नीलवान् पर्वत भी चार सौ योजन ऊँचा है, अतएव उसका अवगाह सौ योजन का है। रुक्मिपर्वत दो सौ योजन ऊँचा है। उसका अवगाह पचास योजन का है। शिखरीपर्वत एक सौ योजन ऊँचा है। उसका अवगाह पचास योजन का है। वैताढ्यपर्वत भरतक्षेत्र के मध्य में स्थित है, इसके कारण भरतक्षेत्र दो भागों में बट गया है । वैताड्य से उत्तर की ओर का भाग उत्तर भरत कहलाता है और दक्षिण की ओर का भाग दक्षिण भरत । वैताठ्यपर्वत पूर्व से पश्चिम तक लम्बा है । दोनों ओर से उसका कुछ भाग लवण समुद्र को स्पर्श करता है । उस पर्वत पर विद्याधर निवास करते हैं। दक्षिण में पचास और उत्तर में साठ नगरों से युक्त, दक्षिणश्रेणिं और उत्तरश्रेणि नामक दो श्रेणियों से विभूषित है। दो,
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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