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________________ nnada ६०४ तस्वार्थसूत्रे असयः-९ असिपत्रवनाभिधानाः-१० कुम्भीनामानः-११ वालुकाभिधानाः-१२ वैतरणीसंज्ञकाः-१३ खरस्वरा:-१४ महाघोषाश्च-१५ पञ्चदश-असुरनिकायान्तः-पातिनो देवविशेषा एव मिथ्यादृष्टयः पूर्वजन्मसु संक्लिष्टकर्मणः पापाभिरतयः आसुरीं गति प्राप्ताः परमाधार्मिकाः सन्ति । एतेच-भिन्नहेतुकदुःखोत्पादनादेव प्राप्ततथाविधसंज्ञाः समवसेयाः । क्लेशकर्मजनिताः खलु-एते पञ्चदशा-ऽसुरास्ताच्छील्यान्नारकाणां विचित्राभिरुपपत्तिभिर्वेदनाः समुत्पादयन्ति, ___ तथाहि-तप्तायोरसपायन निष्टप्तायःस्तम्भाश्लेषण-कूटशाल्मल्यग्रारोहण ऽवतारणा ऽऽयोधनाऽभिघातवासी क्षुरतक्षणक्षारतप्ततैलाभिषेचना-ऽयःकुम्भीपाका-ऽम्बरीषभर्जनयन्त्रपीडना-ऽयः शूलशलाकाभेदन क्रकचविदारणा-ऽङ्गारज्वालादहनसूचीतीक्ष्णाग्रभागा-ऽपकर्षगादिभिः सिंह व्याघ्रद्वीपि-तरक्षु-श्व-शृगालवृक-मार्जार-नकुल-सर्प-काक-गृन-बायसो-छुक-श्येनादिभक्षणैः, तप्तवालुकावतरणा-ऽसिपत्रवनप्रवेशनवैतरणी नदी निमज्जन पर पराऽयोधनादिभिश्च तेषां दुःखोत्पादकाः भवन्ति । एवञ्च-नरकेषु पूर्वोक्तस्वरूपेषु नारकाणां त्रिविधानि दुःखानि भवन्ति । परस्परोदीरणजनितानि क्षेत्रस्वभावोत्पन्नानि, तृतीय पृथिवीपर्यन्तं संक्लिष्टा सुरोदीरितानि (९)असि (१०)असिपत्रवन (११)कुंभी (१२)वालुका (१३)वैतरणी (१४)खरस्वर (१५)महाधोष । यह पन्द्रह असुरनिकाय के अन्तर्गत देव ही, मिथ्यादृष्टि पूर्व जन्मों में क्लिष्ट कर्म करनेवाले पाप में अभिरुचि रखनेवाले एवं असुरंगति को प्राप्त परमाधार्मिक कहलाते हैं । नारक जीवों को माना प्रकार से दुःख उत्पन्न करने के कारण ही वे 'परमा वार्मिक' कहलाते हैं । क्लिष्ट कर्मों के कारण उत्पन्न ये पन्द्रह प्रकार के असुर अपनी जन्मजात प्रकृति से ही नारक जीबों को विविध प्रकार से वेदनाएँ उत्पन्न किया करते हैं । वेदनाएँ उत्पन्न करने के कतिपय प्रकार निम्नलिखित हैं ___ लोहे को खूब तपाकर पिलाना, अत्यन्त तपे हुए लोहमय स्तंभ का आलिंगन करवाना क्ट शाल्मली वृक्ष पर चढ़ाना-उतारना, लोहे के घनों से आधात करना वसूला एवं छुरा आदि शस्त्रों से छोलना, तपाये हुए नमकीन तैल का छिड़कना, लोहे की कुंभियों में पकाना, भाड़ में चने की तरह भूनना, यंत्रों में पीलना, लोहे के शूलों और सलाइयों से भेदन करना, करौत से चीरना, अंगारो की ज्वाला में जलाना, सुइयों की नोंकों पर रगड़ना, सिंह, व्याघ्र दीपिक ( दीवड़ा ), तरक्ष श्वान, शृगाल, भेड़िया, मार्जार, नौला, सर्प, काक, गृध्र, वायस, (काक) उल्टूक और बाज आदि पक्षियों के द्वारा भक्षण किया जाना, गर्म बालू पर चलाना, असिपत्र वन में घुसेड़ना वैतरणी नामक नदो में डुबाना और आपस में लड़ाना-भिड़ाना; इत्यादि प्रकारों से वे परमाधार्मिक देव नारक जीवों को दुःख उत्पन्न करते हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त स्वरूप वाले नरकों में नारक जीवों को तीन प्रकार के दुःख होते हैं(१) नारकों द्वारा परस्पर में दिए जाने वाले दुःख (२) नरक क्षेत्र के स्वभाव से उत्पन्न होने वाले दुःख और (३) तीसरी पृथ्वी तक संक्लेशपरिपूर्ण असुरों द्वारा पैदा करने वाले दुःख ।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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