SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 592
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ. ५ सू. ११ रत्नप्रभादिसप्तभरकभूमिनिरूपणम् ५८५ तत्वार्थनियुक्ति:--जीवाजीवादिनवतत्त्वेषु क्रमप्राप्तस्य पापतत्त्वस्यास्मिन् पञ्चमाध्याये प्ररूपितत्वेन तत्प्रस्तावत् दुःखविशेषरूपतत्फलभोगतीविपाकस्थानतया रत्नप्रभादिसप्त नरकभूमीः प्ररूपयितुमाह- "रयणसक्कर" इत्यादि। रत्न--शर्केरा-वालुका-पङ्क-धूम-तमस्तमः प्रभाः सप्त नरकभूमयो घनोदधिधनवाततनुवाताकाशप्रतिष्ठिताः अधोऽधः पृथुलाः सन्ति । तत्र-प्रभाशब्दस्य प्रत्येकमन्वयेन रत्नप्रभाशर्कराप्रभा-वालुकाप्रभा-पङ्कप्रभा-धूमप्रभा-तमः प्रभा-तमस्तमः प्रभा इत्येताः सप्त पृथिव्योभूमयो घनोदधिधनवाततनुवाताकाश प्रतिष्ठिताः । तथाहि-सर्वाध आकाशं, तदुपरि तनुवातः, तदुपरि घनवातः, तदुपरिघनोदधिः, तस्योपरिसप्तमी तमस्तमप्रभापृथिवीप्रतिष्ठिता वर्तते । एवं तमस्तमःप्रभापृथिव्याउपर्यपि-आकाशतनुवातधनवातघनोदधयो वर्तन्ते । तदुपरि षष्ठी तमःप्रभा पृथिवी प्रतिष्ठिता वर्तते । एवमेकैकशः प्रत्येकं पृथिव्या अन्तराले आकाशादयः सन्ति । ताः सप्तापि रत्नप्रभादिभूमयः पराऽपराः अधोऽधो-धस्ताद्वर्तन्ते, उत्तरोत्तरञ्च पृथुतराः विशालाः सन्ति । यथा-रत्नप्रभापेक्षया शर्कराप्रभा-पृथुला, शर्कराप्रभापेक्षया वालुकाप्रभा पृथुला वालुका तत्त्वार्थनियुक्ति-जीब अजीव आदि नौ तत्त्वों से क्रमप्राप्त पापतत्त्व का इस पांचवें अध्यायमें प्ररूपित होने के प्रस्ताव से दुःखरूप उसका फलभोग के तीव्र विपाक स्थान होने से रत्नप्रभा आदि सात नरक भूमियों का प्ररूपण किया जाता है-'रयणसकर' इत्यादि । रत्नप्रभा, १ शर्कराप्रभा, २ वालुकाप्रभा ३ पङ्कप्रभा ४ धूमप्रभा ५, तमःप्रभा ६, तमस्तमःप्रभा ७ ये सात नरकभृमियां घनोदधि घनवात तनुवात और आकाश के आश्रय से रही हुई हैं, और नीचे नीचे आगे आगे की पृथिवी पृथुल-चौड़ी होती हैं । ये सातों पृथिवियां अपने अपने नाम से सार्थक नामवाली हैं, जैसे ग्रनों की प्रभावाली रत्नप्रभा १, शर्करा-तीक्ष्णकंकरों की प्रभावाली शर्कराप्रभा २, इसी प्रकार वालुका, पङ्क, धूम, तमः, तमस्तमःप्रभा इन पांचों के विषयमें जान लेना चाहिये ये सातों पृथिवियां घनोदधि घनवात तनुवात और आकाश पर रही हुई हैं, जैसे—सबसे नीचे पहले आकाश है, उसके उपर तनुवात-सूक्ष्म वायु है, उसके ऊपर घनवात अर्थात् घनिष्ठ वायु है, उसके ऊपर घनोदधि-धनवज्र समान जमा हुआ पानी है, उस पर सातवीं तमस्तमः प्रभा पृथिवी टिकी हुई है। इसी प्रकार उसके ऊपर फिर इसी क्रम से आकाश, तनुवात, घनवात घनोदधि हैं उस घनोदधि पर छठी तमःप्रभा पृथिवी प्रतिष्ठित है । इसी प्रकार प्रत्येक पृथिवी के अन्तरालमें आकाश आदि चार बोल होते हैं, प्रत्येक चार बोलके ऊपर ऊपर छठी, पांचवीं चौथी तीसरी दूसरी और पहली रत्नप्रभा पृथिवी प्रतिष्ठित है तथा रत्नप्रभा से लेकर आगे आगे की पृथिवो ऊपर ऊपर की अपेक्षा से नीचे नीचे की पृथिवी चौड़ी होती हैं ये सातों पृथिवीयां एक एक के नीचे नीचे होती हैं।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy