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________________ ५८४ wwwwww wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww तत्वार्थसूत्र तत्वार्थदीपिका--पापाधिकारात्-तत्फलभोगदुःखविपाकस्थानतया रत्नप्रभादिसप्तनरकभूमीः प्ररूपयितुमाह-"रयणसक्कर" इत्यादि । रत्न-१-शर्करा-२-वालुका-३-पङ्क-४-धूम५-तम-६-तमस्तमः-प्रभा-७, सप्त नरकभूमयो, घनोदधि-धनवात-तनुवाता-ऽऽकाशप्रतिष्ठिताः, अधोऽधः पृथुलाः। तत्र-द्वन्द्वान्ते श्रूयमाणस्य प्रभापदस्य प्रत्येकमभिसम्बन्धात् रत्नप्रभयासहचरिता युक्ता पृथिवीरत्नप्रभोच्यते १, एवं शर्कराप्रभया सहचरिता युक्ता पृथिवी शर्कराप्रभा २, वालुकाप्रभया सहचरिता-युक्ता पृथिवी वालुकाप्रभा ३, पङ्कप्रभया सहचरिता-युक्ता पृथिवी पङ्कप्रभा ४, धूमप्रभया सहचरिता-युक्ता भूमिधूमप्रभा५, तमःप्रभया सहचरिता-युक्ता पृथिवी तमः प्रभा उभ्यते, ६, तमस्तमः प्रभया सहचरिता-युक्ता पृथिवी च तमस्तमः प्रभो-च्यते ७, भूमिग्रहणेन यथा-देवलोकाः भूमिमनाश्रित्यैव स्थिताः सन्ति, न तथा नैरयिकावासाः भूमिमनाश्रित्य स्थिताः अपितु-भूमिमाश्रित्यैव स्थिताः सन्तीति प्रतिपाद्यते । तासाञ्च सप्तभूमीनामाधारज्ञानार्थ घनोदधिधनवातादिग्रहणं कृतम्, घनोदधिश्च घनवातश्च तनुवातश्चा-ऽऽकाशञ्चेति घनोदधिधनवाततनुवाताकाशानि तेषु प्रतिष्ठिताः अवस्थिता यास्ता घनोदधिधनवाततनुवाताऽsकाशप्रतिष्ठिताः अधोऽधः अधस्त्वमाश्रित्य उत्तरोत्तरपृथुला विस्तीर्णाः सन्ति ॥सूत्र ११॥ तत्त्वार्थदीपिका—यहां पापतत्त्व का प्रकरण होने से पाप के फल भोग दुःखविपाक का स्थानभूत होने से रत्नप्रभा आदि सात नरकभूमियों की प्ररूपणा की जाती है 'रयण.' इत्यादि रन्नप्रभा १ शर्कराप्रभा २ वालुकाप्रभा ३, पङ्कप्रभा ४ धूमप्रभा ५ तमःप्रभा ६, तमस्तमःप्रभा ७ ये सातों नरकभूमियां घनोदधि धनवात तनुवात आकाश पर प्रतिष्ठित हैं। ईन सात पृथिवियों के नाम रत्नप्रभा आदि जो हैं वह इस प्रकार से सार्थक हैं, जैसे रत्नों की प्रभा से सहचरित अर्थात् युक्त होने से प्रथम पृथिवी का नाम रत्नप्रभा है. १, शर्करा अर्थात् छोटे छोटे कंकरों के जैसी प्रभावाली होने से दूसरी पृथिवी का नाम शर्कराप्रभा है २ । वालुकाकी प्रभा से युक्त होने से तीसरी पृथिवी का नाम वालुकाप्रभा है ४ । पङ्क अर्थात् कीचड से युक्त होने से चौथी पृथिवी का नाम पङ्कप्रभा है ४ । जहाँ धूम-धूओं जैसी प्रभा है इस कारण पांचवीं पृथिवी का नाम धूमप्रभा है ५, जहां अन्धकार छाया हुआ रहता है उस छठी पृथिवी का नाम तमःप्रभा है ६, जहां निबिड अर्थात् घनघोर अन्धकार छाया रहता है इस कारण सातवीं पृथिवी का नाम तमस्तमःप्रभा है, ७। यहां भूमि शब्द ग्रहण इसलिये किया गया है कि जिस प्रकार देवलोक, भूमि के आश्रय के बिना अपने स्वभाव से टिके हुए हैं उसी प्रकार नरकावास भूमि के आश्रय के विना नहीं टिका हुआ हैं। इन सात भूमियों के आधारभूत घनोदधि धनवात तनुवात और आकाश ये चार हैं वे सातों भूमियां एक एक से आगे आगे पृथुलचौड़ी होती गई हैं। अर्थात् सप्तम. पृथिवी उपरकी छहों पृथिवी से चौड़ी होती है ॥सू० ११॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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