SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ wwwwwww wwwwww www wwwwwwwwwwwwwww .. तत्त्वार्यस्त्र प्रभापेक्षया पङ्कप्रभा पृथुला, पङ्कप्रभापेक्षया धूमप्रभा पृथुला, धूमप्रभापेक्षया तमः प्रभा पृथुला, तमःप्रभापेक्षया तमस्तमः प्रभा पृथिवी पृथुलतराऽस्तीति भावः । एवञ्च-सप्तापि पृथिव्यः धनोदधिवलयप्रतिष्ठिताः सन्ति, घनोदविवलयं-घनवातवलयप्रतिष्ठितं, घनवातवलयं-तनुवातवलयप्रतिष्ठितं, तमुवातवलयमाकाशप्रतिष्ठितं भवति । एतानिसर्वाणि वलया कारत्वेन वलयमिति प्रोक्तम् ।। तथा च–रत्नप्रभाया अधस्तात् योजनाऽसंख्येय कोटीरतिक्रम्य शर्कराप्रभास्ति । एवंशर्कराप्रभायाः अधो योजनकोटीनामसंख्येयकोटीरतिवाह्य वालुकाप्रभाऽस्ति । एवं रीत्याशेषाः पङ्कप्रभाद्याः पृथिव्योऽपि असंख्येययोजनकोटीकोट्यन्तराला अधोऽधोवक्तव्याः । धनग्रहणेन च प्रत्येकं पृथिव्याः अधस्तात् घनएवोदधिर्वर्तते, न तु तत्र द्रवीभूतमम्बु, वातास्तूभयथाऽपि वर्तन्ते घनाश्च तनवश्चेति ज्ञाप्यते । घनोदधिवलयं चाऽसंख्येययोजनसहस्रबाहल्ये घनवातवलये प्रतिष्ठितम्, घनवातवलयं चासंख्येययोजनसहस्रबाहल्ये तनुवातवलये प्रतिष्ठितम् । तनुवातवलयानन्तरं च महातमोभूतमाकाशमसंख्येययोजनकोटिकोटीप्रमाणं वर्तते, तच्चाकाशम्-अस्याः खरकाण्डपङ्कबहुलाऽब्बहुल जैसे रत्नप्रभा के नीचे शर्कप्रभा पृथिवी रत्नप्रभा की अपेक्षा चौडी है २ । एवं शर्कराप्रभा की अपेक्षा उसके नीचे की वालुकाप्रभा पृथिवी चौडी है ३ । उसकी नीचे पङ्कप्रभा पृथिवी वालुका प्रभा पृथिवी की अपेक्षा चौड़ी है ४, । पङ्कप्रभा पृथिवी की अपेक्षा इसके नीचे की धूमप्रभा पृथिवी चौड़ी है ५ । धूमप्रभा की अपेक्षा इसके नीचे की तमःप्रभा पृथिवी चौड़ी है ६ । तमः प्रभा की अपेक्षा इसके नीचे की तमस्तमः प्रभा पृथिवी चौड़ी है ७ ।।। इस प्रकार सातों पृथिवियां घनोदधि वलय पर प्रतिष्ठित है । घनोदधिवलय धनवातवलयपर प्रतिष्ठित है। घनवातवलय तनुवातवलयपर प्रतिष्टित है तनुवातवलय आकाश प्रतिष्ठित है। ये सब वलयाकार होने से वलय शब्द से कहे गये हैं। इन पृथिवियों का परस्पर कितना अन्तराल है वह कहते हैं-रत्नप्रभा की नीचे असंख्यात करोड योजन जाने पर शर्कराप्रभापृथिवी आती है २ शर्कराप्रभा पृथिवी के नीचे असंख्यात करोड करोड योजन जाने पर वालुकाप्रभापृथिवी आती है । इसी प्रकारसे शेष पङ्कप्रभा आदि पुथिवियां भी एक एक के नीचे असंख्यात करोड करोड योजन की अन्तरालतासे प्रतिष्ठित हैं । . यहां घनशब्दके ग्रहण करने से वह पानी घनीभूत है नहीं कि द्रवीभूत, अर्थात् वह पानी वज्र सा जमा हुआ घनरूप हैं किन्तु द्रव तरल पतला नहीं है, ऐसा समझना चाहिये । इसके नीचे का वायु दोनों प्रकार का है, पहला घन और दूसरा तनु तरल पतला है । घनोदधि असंख्थास हजार योजन की चौडाई वाले घनवात पर प्रतिष्ठित है, धनवात असंख्यात हजार योजन की चौडाई वाले तनुवात पर प्रतिष्ठित है, तनुवात के बाद असंख्याल करोडा करोड़ योजन वाला महा तमोभूत आकाश रहा हुआ है, वह आकाश खरकाण्ड, पङ्क बहुलकाण्ड,
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy