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________________ ३७४ तत्त्वार्थसूत्रे मिच्छत्ततिमिरपच्छाइयदिछीरागदोससंजुत्ता। धम्मं जिणपण्णत्तं भवावि नरा नरोयंति ॥१॥ मिच्छादिट्टीजीवो उवइ पवयणं न सद्दहइ । सदहइ असम्भावं उवइटुं वा अणुवइ8 ॥२॥ पयमक्खरं च इक्कंपि जो न रोएइ सुत्तनिद्दिढ़ । सेसं रोयंतो वि हु मिच्छादिछीमुणेयव्वो ॥३॥ इति, मिथ्यात्वतिमिरप्रच्छादितदृष्टयो रागद्वेषसंयुक्ताः । धर्म जिनप्रज्ञप्तं भव्या अपि नरा न रोचन्ते ॥१॥ मिथ्यादृष्टिीवउपदिष्टं प्रवचनं न श्रद्धधाति । श्रद्दधात्यसद्भावमुपदिष्टं वाऽनुपदिष्टम् ॥२॥ पदमक्षरं चैकमपि यो न रोचते' सूत्रनिर्दिष्टम् । शेषं रोचमानोऽपि खलु मिथ्यादृष्टितिव्यः ॥३॥ इति किञ्चोक्तञ्च-॥ तं मिच्छत्तं जमसदहणं तच्चाण जाण भावाणं । संसइयमभिग्गहियं अणभिग्गहियं च तिविहं च ॥१॥ इति । तन्मिथ्यात्वं यद् अश्रद्धानं तथ्यानां जानीहि भावानाम् । सांशयिकमाभिग्रहिकमानाभिग्रहिकञ्च त्रिविधञ्च ॥ इति । जिनकी दृष्टि मिथ्यात्व रूपी अन्धकार से आच्छादित हो गई है, जो राग और द्वेष से युक्त हैं, ऐसे जीव भव्य होने पर भी जिनेन्द्रप्ररूपित धर्म पर रुचि नहीं करते ॥१॥ मिथ्यादृष्टि जीव उपदिष्ट प्रवचन पर तो श्रद्धा करता नहीं, किन्तु उपदिष्ट या अनुषदिष्ट असद्भाव पर अर्थात विपरीत तत्त्व पर श्रद्धा करता है ॥२॥ ___ जो जीव सूत्र-आगम में कथित एक भी पद या एक भी अक्षर पर अरुचि (अश्रद्धा) करता हैं, वह शेष समग्र आगम पर श्रद्धा करता हो तो भी उसे मिथ्यादृष्टि ही समझना चाहिए ॥३॥ तत्त्वार्थश्रद्धान रूप आत्मा का परिणाम सम्यक्त्व कहलाता है। सम्यक्त्व पाँच प्रकार का है-(१) औपशमिक (२) सास्वादन (३) वेदक (४) क्षायोकशमिक और (५) क्षायिक । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ और दर्शन मोहनीय की तीन, यो सातों प्रकृतियों का उपशम होने पर औपशमिक सम्यक्त्व उत्पन्न होता है यह सम्यक्त्व अन्तर्मुहूर्त मात्र ही रहता है । तत्पश्चात् अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय हो जाता है और अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से सम्यक्त्व का निश्चय ही घात हो जाता है । कहा भी है ___अगर संयोजना का अर्थात् अनन्तानुबंधी कषाय का उदय रहता तो सास्वादन सम्यक्त्व हो जाता है और यदि उसका अभाव होता है तो निर्दोष सम्यक्त्व प्राप्त होता है ॥१॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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