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________________ wAMAnnnnnnnnnnnwwwwwwwwww तत्त्वार्थसूत्रे तथाहि यथा रूपोपलब्धौ चक्षुनिमित्तं सदपि न व्याक्षिप्तमनस्कस्य भवति, एवं प्रकृ. तानां धर्माऽधर्माकाशानां निष्क्रियत्वेऽभ्युपगते सति जीवपुद्गलानां सक्रियत्वेन तेषां सक्रियत्वमर्थादापन्नं भवति । एवं सति-कालस्यापि सक्रियत्वमर्थादापद्यते, तस्याऽनधिकृतत्वात् । अत एवाऽसौ एतैः सह नाऽधिकियते इति भावः । ___ उक्तञ्च- "उप्पण्णेति वा, विगमेति वा, धुवेति वा" इति । उत्पन्न इति वा, विगम इति वा, ध्रुव इति वा, इति । एवमन्यत्राऽप्युक्तम् "अवगाहादओ नणु गुणत्तओचेव पत्तधम्मच- । उप्पादादिसभावा, तंह जीवगुणावि को दोसो- ॥१॥ अवगाढा रं च विणा, कत्तोऽवगाहोत्ति तेण संजोगी। उप्पत्तीसोऽवस्सं गच्चुवकारादओ चेवं- ॥२॥ णयपज्जयतो भिन्नं दव्वमिहेगं ततो जतो तेण । तण्णासम्मि कहं वा नभादओ सव्वहा णिच्चा ॥३॥ गाथा-२८२१-२८२३] छाया--अवगाहादयो ननु गुणत्वतश्चैव पत्र धर्मइव । उत्पादादिस्वभावा स्तथा जीवगुणा अपि को दोषः ॥१॥ अवगाढारं च विना कुतोऽवगाह इति तेन संयोगः । उत्पत्तिःसाऽवश्यं गत्युपकारादयश्चैवम्- ॥२॥ न च पर्यायतो भिन्नं द्रव्यमिहैकान्ततो यतस्तेन- । तन्नाशे कथं वा नभ आदयः सर्वथा नित्याः ॥३।। - ३ इति ॥५॥ जैसे रूप की उपलब्धि में चक्षु निमित्त होती है, फिर भी विक्षिप्तचित्त वाले के लिए वह निमित्त नहीं होती, इसी प्रकार धर्म, अधर्म और आकाश को क्रियाहीन मानने पर भी, जीवों और पुद्गलों के सक्रिय होने से उनमें भी सक्रियता की सिद्धि हो जाती है। इसी प्रकार काल भी सक्रिय सिद्ध होता है । इन द्रव्यों के साथ का प्रकरण नहीं है। आगम में कहा है-प्रत्येक वस्तु उत्पन्न होती है, नष्ट भी होती है और ध्रुव भी रहती है । अन्यत्र भी कहा है जेसे अवगाह आदि गुण होने के कारण उत्पाद-व्ययध्रौव्य स्वभाव वाले हैं, उसी प्रकार जीव के गुण भी यदि उत्पाद आदि स्वभाव वाले हैं तो क्या दोष है ? ॥१॥ अवगाहक के विना अवगाहन कैसे हो सकता है ? गति आदि उपकार भी इसी प्रकार के हैं ॥२॥ ___ द्रव्य, पर्याय से सर्वथा भिन्न नहीं है अर्थात् कथंचित् अभिन्न है। ऐसी स्थिति में पर्याय का नाश होने पर आकाश आदि द्रव्यों को सर्बथा नित्य कैसे माना जासकता है ? ॥३॥५॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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