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________________ तत्वार्थस्त्रे चतुःपञ्चविग्रहायां त्रीन् समयान् अनाहारको भवतीति भावः । तथाचोक्तम्-व्याख्याप्रज्ञप्ती भगवतीसूत्रस्य सप्तशतके प्रथमोद्देशे २६०-सूत्रे-'जीवे णं भंते-! के समयमणाहारए भवइ-! गोयमा-! पढमे समए सिय अणाहारए, बितीए समए सिय आहारए सिय अणाहारए, ततिए समए सिय आहारए सिय अणाहाए, चउत्थे समए नियमा आहारए एवं दंडओ जीवाय एगिदियाय चउत्थे समए सेसा ततिए समए-"। जीवः खलु भदन्त-! के समयमनाहारको भवति- गौतम-! प्रथमे समये स्यादाहारकः-स्यादनाहारकः, द्वितीये समये स्यादाहारकः स्यादनाहारकः, तृतीये .समये स्यादाहारकः स्यादनाहारकः, चतुर्थे समये नियमादाहारकः एवं दण्डकः, जीवाश्चैकेन्द्रियाश्च चतुर्थे समये शेषास्तृतीये समये -इति ॥२७॥ मूलसूत्रम् -"तिविहं जम्मं, गम्भ संमुच्छिणोववाया-" ॥२८॥ छाया-"त्रिविधं जन्म गर्भ-सम्मूर्छनोपपाता:-" ॥२८॥ लिए गमन करता है । प्रकृत सूत्र में इस प्रकार के पुद्गलों के ग्रहण का निषेध नहीं किया गया है किन्तु औदारिक, और वैक्रिय शरीर का पोषण करने वाले आहार का ही निषेध किया गया है, अर्थात् अनाहार दशा में जीव औदारिक, वैक्रिय एवं आहारक शरीर के तथा छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण नहीं करता है । इसी कारण विग्रहगति में एक, दो या तीन समय तक अनाहारक रहता है । पूर्वोक्त एक, दो या तीन समय को छोड़कर शेष सभी समयों में निरन्तर आहारक ही रहता है । उत्पत्ति के प्रथम समय से आरम्भ करके अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त ओजआहार करता है तत्पश्चात् भवपर्यन्त लोमाहार करता है । चार-पाँच विग्रह वाली गति में कवलाहार की दृष्टि से अनाहारक रहता है । भगवती सूत्र के सातवें शतक में, प्रथम उद्देशक में, २६० वें सूत्र में कहा है प्रश्न-भगवन् ! जीव किस समय अनाहारक होता है ? उत्तर-गौतम ! प्रथम समय में कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है, दूसरे समय में कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है, तीसरे समय में कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है, .चौथे समय में नियम से आहारक होता है। ऐसे ही सम्पूर्ण दंडक कह लेना चाहिए । बहुत जीव और एकेन्द्रिय चौथे समय में और शेष सब तीसरे समय में कहना चाहिए ॥२७॥ सूत्र-'तिविहं जम्मं इत्यादि ॥२८॥ मूलसूत्रार्थ - जन्म तीन प्रकार के हैं-गर्भजन्म, संमूर्छिमजन्म और उपपातजन्म
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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