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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५९२ तत्त्वनिर्णयप्रासादतचंदनसुगंध्यंबुस्रजोव्याधिहराः स्फुटम् ॥ प्रत्यहं त्वत्पतेर्भत्तया प्रयच्छ रोगहानये ॥२॥ भावार्थ:-मदनसुंदरीको महामुनिने कहा कि, श्रीसिद्धचक्रका आठ दिनपर्यंत निरंतर जगत्में सारभूत ऐसें जलादि आठ प्रकारके पूजाके द्रव्यसें, अर्थात् अष्टद्रव्यसें पूजन कर; और निरंतर व्याधिको हरनेवाले, ऐसें सिद्धचक्रको स्पर्श हुए, चंदन, सुगंध, जल, और माला, रोगके दूर करने वास्ते भक्ति से अपने पतिको लगाव. तथा निर्वाणकांडमें ऐसें लिखा है.॥ गोमट्टदेवं वंदामि पंच सयंधणुहदेहउच्चंतं ॥ देवा कुणंति विढि केसरकुसुमाण तस्सउवरिम्म ॥१॥ भावार्थः-गोमट्टदेव (बाहुबल) को मैं वंदना करता हूं, कैसे हैं गोमदेव ? जिसका पांचसौ धनुष्य प्रमाण उच्चदेह है, और तिसके ऊपर देवता केसर और पुष्पोंकी वर्षा करते हैं. तथा षट्कर्मोपदेशरत्नमालामें ऐसें लिखा है. ॥ इतीमं निश्चयं कृत्वा दिनानां सप्तकं सती॥ श्रीजिनप्रतिबिंबानां स्नपनं समकारयत् ॥१॥ चंदनागरुकर्पूरसुगंधैश्च विलेपनम् ॥ सा राज्ञी विदधे प्रीत्या जिनेंद्राणां त्रिसंध्यकम् ॥२॥ भावार्थ:-यह (पूर्वोक्त ) निश्चय करके मदनावलीनामा राणी, श्रीजिनेंद्रप्रतिमाको सात दिन स्नान कराती भई; और प्रीतिसें त्रिसंध्यामें जिनेंद्रको चंदन अगरकर्पूरादि सुगंध द्रव्योंसें विलेपन करती भई. प्रतिष्ठापाठमें ऐसें लिखा है.॥ जिनांधिस्पर्शमात्रेण त्रैलोक्यानुग्रहक्षमाम् ॥ इमां स्वर्गरमादूती धारयामि वरस्रजम् ॥१॥ भावार्थ:-मैं प्रधानमालाको धारण करता हूं, कैसी माला ? जिनेंद्रके 'चरणके स्पर्शमात्रसे तीनों लोकोंको अनुग्रह करने में समर्थ, और स्वर्गकी समीकी शातिमें दूत समान. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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