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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। ५९३ तथा आराधनाकथाकोषमें करकंडुके चरित्रमें ऐसे लिखा है. ॥ तदा गोपालकः सोपि स्थित्वा श्रीमजिनाग्रतः ॥ भो सर्वोत्कृष्ट ते पद्मं ग्रहाणेदमिति स्फुटम् ॥ १॥ उक्त्वा जिनेंद्रपादाब्जोपरि क्षिप्त्वाशु पंकजम्॥ गतो मुग्धजनानां च भवेत्सत्कर्मशर्मदम् ॥ २॥ भावार्थः-तब सो गोपाल भी श्रीजिनमूर्त्तिके आगे स्थित होके, भो सर्वोत्कृष्ट ! यह कमल ग्रहण कर, ऐसा कहके श्रीजिनेंद्रके चरणकमलोपरि कमलको शीघ्र क्षेपन करके, गया; इत्यादि. तथा श्रीजिनयज्ञकल्पप्रतिष्ठाशास्त्रमें ऐसें लिखा है.॥ “॥ श्रीजिनेश्वरचरणस्पर्शादना पूजा जाता सा माला महाभिषेकावसाने बहुधनेन ग्राह्या भव्यश्रावकेनेति ॥" भावार्थः-श्रीजिनेश्वरके चरणस्पर्शसें अमूल्य पूजा हुई, सो महाभिषेक अंतमें भव्य श्रावकने बहुत धनकरके ग्रहण करनी. तथा व्रतकथाकोषमें ऐसे लिखा है. ॥ तत्प्रश्नाच्छृष्टिपुत्रीति प्राह भद्रे शृणु ब्रुवे ॥ व्रतं ते दुर्लभं येनेहामुत्र प्राप्यते सुखम् ॥१॥ शुक्लश्रावणमासस्य सप्तमीदिवसेहताम् ॥ स्नापनं पूजनं कृत्वा भत्त्याष्टविधमूर्जितम् ॥२॥ ध्रीयते मुकुटं मूर्ध्नि रचितं कुसुमोत्करैः॥ कंठे श्रीवृषभेशस्य पुष्पमाला च धीयते ॥३॥ भावार्थः-तिसके प्रश्नमें आर्यिकाजी कहती भई, हे भद्रे श्रेष्ठिपुत्रि ! सुण, मैं तुजको व्रत कहती हूं; जिस व्रतके प्रभाव इसलोकमें, और परलोकमें दुर्लभ सुख प्राप्त करिये हैं;। सोही व्रत दिखावे हैं. शुक्लश्रावणमासकी सप्तमीके दिन अर्हन् भगवान्की मूर्तियोंको भक्तिसें स्नान करायके, अष्टद्रव्यकरके जिनेंद्रका पूजन करके, कुसुमोंके ( पुष्पोंके ) समूहसें रचे For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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