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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जैसे खिलवाले पुरुष, अभिभव होते अन्यथा, पंगु, वामन ५७४ तत्त्वनिर्णयप्रासादहोना चाहिये, ऐसा नियम नहीं है. अन्यथा, पंगु, वामन, अत्यंत रोगी पुरुषोंको, स्त्रियांकरके अभिभव होते देखीए हैं, तब तो, वे भी, तुच्छ शरीरसत्ववाले पुरुष, कैसे मुक्तिके साधनेवाले सत्वके भागी होवेंगे ? जैसे तिनके शरीरसामर्थ्यके न हुए भी, मोक्षसाधनसामर्थ्य अविरुद्ध है, तैसें स्त्रियांको भी जानना. दिगंबर:-जेकर वस्त्रोंके हुए भी, मोक्ष मानते हो तो, गृहस्थको मोक्ष क्यों नही मानते हो ? - श्वेतांबरः-गृहस्थको ममत्व होनेसें, मोक्ष नही होवे है. क्योंकि, ऐसा नहीं हो सकता है कि, गृहस्थी वस्त्रमें ममत्व न करे. और जो ममत्व है, सोही परिग्रह है; ममत्वके हुए, नग्न भी परिग्रहवान् होता है; और शरीरमें भी ममत्वके होनेसें परिग्रहवान् होता है. और आर्यिका (साध्वी ) को तो, ममत्वके अभावसे, उपसर्गादि सहनेकेवास्ते, वस्त्र परिग्रह नहीं है. यतिमुनिको भी ग्राम घर वनादिमें रहनेवालेको, ममत्वके अभावसें परिग्रह नही है. और जिन महात्मा स्त्रियोंने अपने आत्माको वश करा है, तिनको किसी वस्तुमें भी मूर्छा नही है.। यतः॥ निर्वाणश्रीप्रभवपरमप्रीतितीव्रस्पृहाणां । मूर्छा तासां कथमिव भवेत् क्वापि संसारभागे ॥ भोगे रोगे रहसि सजने सज्जने दुर्जने वा। यासां स्वांतं किमपि भजते नैव वैषम्यमुद्राम् ॥ १॥ भावार्थ:-निर्वाणरूप लक्ष्मीके उत्पन्न करनेमें परमप्रीतिकरके तीन उत्कट स्पृहा अभिलाषा है जिनोंकी, और जिनोंका खांत-अंतःकरण-मन भोगमें रोगमें एकांतमें समुदायमें सजनमें वा दुर्जनमें इत्यादि किसीभी संसारक भागमें वैषम्यमुद्रा-अशांतताविकारादिको नहीं भजता है, तैसी महात्मा स्त्रियोंको मूर्छा कैसे होवे ? कदापि न होवे इत्यर्थः ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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