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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। तथा चागमेप्युक्तम् ॥ “॥ अवि अप्पणोवि देहमि नायरंति ममाइयम् ॥” इति ॥ महात्माजन अपनी देहमें भी ममत्व नही आचरण करते हैं. इस कहनेसें मूर्छा हेतु होनेसें, यह भी पक्ष, खंडित होगया. शरीरवत् वस्त्रको भी, किसीको मूर्छाहेतुत्वके अभाव होनेसें, परिग्रहरूपत्वका अभाव है. अपिच । शरीर भी मूछीका हेतु है, वा नही ? नहीं, ऐसा तो, नही कह सकते हो. क्योंकि, शरीरके विना मूर्छा होतीही नही है. यदि हेतु है, तो वस्त्रकीतरें किसवास्ते त्याज्य नही है ? दुस्त्याज्य है इसवास्ते ? वा मुक्तिका अंग है इसवास्ते ? दुस्त्याज्य है इसवास्ते, ऐसे कहो तो, सो सर्वपुरुषोंको, वा किसी किसीको ? सर्वकों कहो तो ठीक नहीं. क्योंकि, बहुत वन्हिप्रवेशादिकसे शरीर त्यागते हुए दीखते हैं. किसी किसीको कहो तो, सो ठीक है; जैसे किसीको शरीर दुस्त्याज्य है, तैसेंही वस्त्र भी हो. और मुक्तिअंग कहो तो, वस्त्र भी अशक्तको स्वाध्यायादि उपष्टंभरूप होकर, मुक्तिका अंग है, इसवास्ते त्याज्य नहीं है. यदि जीवसंसक्तिहेतुत्वसे कहो तो, शरीरको भी जीवसंसक्तिहेतुसें परिग्रहरूप मानना चाहिये. क्योंकि, कृमि गंडुक (गंडोये) आदिकी उत्पत्ति तिसमें भी प्रतिप्राणीको विदित है. यदि कहो कि, शरीरप्रति तो, परम यत्न होनेसें सो अदुष्ट है तो, यही न्याय वस्त्रको लगानेमें क्या बाध है? तिसवखत क्या तिस न्यायको वायस (काग) भक्षण कर गये हैं? वस्त्रका भी सीवन, क्षालन, इत्यादि यत्नसेंही होता है, इसवास्ते तिसमें भी जीवसंसक्तिका संभव कहां रहा? इसवास्ते वस्त्रसद्भावके हुए चारित्राभाव सिद्ध नहीं हुआ. तिसवास्ते सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयके अभावकरके स्त्रियोंको पुरुषोंसें हीनता नही है. ॥ १॥ ___ और विशिष्टसामर्थ्यके न होनेसें स्त्रीको मोक्ष नही, यह भी कथन, ठीक नहीं है; क्या सप्तम नरकमें जानेके अभावसें विशिष्टसामर्थ्य नही है ? वादादिलब्धियोंसे रहित होनेसें ? अल्पश्रुतवाली होनेसें ? For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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