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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादतिस मृलसंघमेंही चार संघ उत्पन्न हुए, सेनसंघ । १ । नंदिसंघ । २। सिंहसंघ । ३ । देवसंघ । ४। दूसरे भद्रबाहुके शिष्य अर्हद्दलि, तिसके चार शिष्योंने चार संघ स्थापन करे. प्रथम शिष्य माघनंदि, तिसने नंदिवृक्षके नीचे चतुर्मास करा, तिसने नंदिसंघ स्थापन करा।१। दूसरा शिष्य चंद्र, तिसने तृणके नीचे चतुर्मास करा, तिसने सेनसंघ स्थापन करा ।२। तीसरा कीर्ति, तिसने सिंहकी गुफामें चतुर्मास करा, तिसने सिंहसंघ स्थापन करा । ३। चौथा भूषण, तिसने देवदत्ता वेश्याके घरमें वर्षायोग धारा सो देवसंघ हुआ।४। तथा च नीतिसारका श्लोक ॥ अर्हबलिगुरुचके संघसंघटनं परं ॥ सिंहसंघो नंदिसंघः सेनसंघो महाप्रभः॥१॥ देवसंघ इतिस्पष्टं स्थानस्थितिविशेषतः ॥ इसका भावार्थ उपर लिख आए हैं. अब विचार करना चाहिये कि, पूर्वोक्त लेखमें श्वेतांबरोत्पत्तिका संवत् नहीं लिखा है. तथा इस मूलसंघकी पट्टावलिमें, और नीतिसारमें प्रथम श्वेतपटीगच्छ । १ । पीछे काष्टसंघ । २ । पीछे द्राविडगच्छ । ३ । पीछे यापुलीयगच्छ । ४ । इन गच्छोंके कितनेक कालपीछे श्वेतांबर मत हुआ, ऐसें लिखा है. यह कथन देवसेनाचार्यकृत दर्शनसारके कथनसें विरोधि है. क्योंकि, दर्शनसारमें प्रथम श्वेतांवर । १ । पीछे यापुलीय । २ । पीछे श्वेतपट । ३ । पीछे द्राविड । ४ । पीछे काष्टसंघ, ऐसें लिखा है. तथा च तत्पाठः॥ छत्तीसे वरीससए विकमरायस्स मरणपत्तस्स ॥ सोरटे वलहीए सेवडसंघो समुप्पण्णो ॥ ११॥ कल्लाणे वरणयरे दुण्णिसए पंच उत्तरे जादो ॥ जाउलियसंघभेओ सिरिकलसादोहु सेवडदो॥२९॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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