SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 659
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। ५४७ पंचसए छवीसे विकमरायस्स मरणपत्तस्स ॥ दक्षिणमहरा जादो दाविडसंघो महामोहो ॥ २८॥ सत्तसये तेवण्णे विकमरायरस मरणपत्तस्स ॥ णंदियडेवरगामे कट्टो संघो मुणेयवो ॥ ३८ ॥ भाषार्थः-एकादश (११) गाथाका अर्थ प्रथम लिख आए हैं, दिगंवरके पक्षमें. कल्याणी नगरीमें २०५ वर्षे यापुलीय संघका भेद हुआ, और श्रीकलशमें श्वेतपट हुआ. ॥ २९ ॥ विक्रमराजाके मरण प्राप्त हुए पीछे ५२६ वर्षे दक्षिणमथुरामें महामोहसें द्राविडनामा संघ उत्पन्न हुआ. ॥ २८ ॥ विक्रमराजाके मरण पीछे ७५३ वर्षे नंदियडेवरगाममें काष्टसंघ उत्पन्न हुआ जानना. ॥३८॥ इस काष्टसंघकी मूलसंघकी पट्टावलिमें तथा नीतिसारमें निंदा नही लिखि है, परंतु देवसेनने काष्टसंघकी दर्शनसारमें बहुत निंदा लिखि है। तथाहि ॥ सिरिवीरसेणसीसो जिणसेणो सयलसत्थविन्नाणी ॥ सिरिपउमनंदि पच्छा चउसंघसमुद्धरो धीरो ॥३०॥ तस्स य सीसो गुणवं गुणभद्दो दिवणाणपरिपुण्णो ॥ परकत्सयहमदी महातवो भावलिंगो य ॥ ३१॥ तेणप्पणोवि मच्चं णाऊण मुणिस्स विणयसेणस्स ॥ सिद्धते घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ॥३२॥ आसी कुमारसेणो णंदियरे विणयसेणमुणिसांसे ॥ सण्णासभंजणेण य अगहियपुणुदिक्खओ जादो ॥३३॥ परिवज्जिऊण पिच्छं चमरं चित्तूण मोहकलिदेण ॥ उम्मग्गं संकलियं वागडविसएसु सवेसु ॥ ३४॥ इत्थाणं पुण दिक्खा खुल्लयलोमस्स वीरचरियत्तं ॥ ककसकेसग्गहणं छठें गुणवृदं णाम ॥ ३५॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy