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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५४० तत्त्वनिर्णयप्रासादइसवास्ते अव्यवच्छिन्नसंप्रदायसें पंचांगी अनुसारही, अर्थ सुज्ञ जनोंको मानना चाहिये, परंतु अन्य प्रकारसे नहीं. * ऊपर लिखि गाथाका यथार्थ अर्थ ऐसा है. “अचेलगो य जे धम्मो" इत्यादि-अचेलकश्चाविद्यमानचेलकः । परिजुन्नमप्पमुलं इत्यागमान्नञः कुत्सार्थत्वात् कुत्सितचेलको वा यो धर्मो वर्द्धमानेन देशित इत्यपेक्षते । जो इमोत्ति । यश्चायं सांतराणि वर्द्धमानशिष्यवस्त्रापेक्षया कस्यचित् कदाचित् मानवर्णविशेषितानि उत्तराणि च बहुमूल्यतया प्रधानानि वस्त्राणि यस्मिन्नसौ सांतरोत्तरोधर्मः पार्श्वेन देशितः । इतिटीका। भाषार्थः-अचेलक कहिये, अविद्यामानचेलक, अर्थात् वस्त्ररहित; अथवा पक्षांतरमें दूसरा अर्थ, परिजीर्ण सर्वथा पुराने वस्त्र, अल्पमोलके, इस आगमके वचनसे नकारको कुत्सार्थवाचक होनेसे कुत्सितवस्त्रवाला जो धर्म, तिसको अचेलक धर्म कहिये; ऐसा अचेलक धर्म, वर्द्धमान महावीरस्वामीने उपदेश्या है. और यह, जो, सांतर, वर्द्धमानस्वामीके शिष्योंकी अपेक्षासें किसीको किसी वखत मान, वर्ण, विशेषसहित; उत्तर बहुमोले होनेकरके प्रधानवस्त्र है जिसमें, ऐसा सांतरोत्तर धर्म, पार्श्वनाथने उपदेश्या है. भावार्थः-इसका यह है कि, मुखवस्त्रिका रजोहरण वर्जके पहिरनेके सर्ववस्त्ररहित सर्वोत्कृष्ट जिनकल्पीकी अपेक्षा अचेल धर्म है; और जीर्ण अल्पमोलके वस्त्र रखने यह भी अचेल धर्मही है, परंतु एकांत वस्त्ररहितकाही नाम अचेलधर्म है, ऐसा जैनमतके शास्त्रोंका अभिप्राय नहीं है. क्योंकि, जैनमतके शास्त्रोंमें ठिकाने ठिकाने वस्त्रादि ग्रहण करनेका विधि कथन करा है, यदि अचेल शब्दका अर्थ नग्न ऐसाही जैनमतके शास्त्रोंको सम्मत होवे तो, वस्त्रग्रहणविधि क्यों लिखते हैं ? इसवास्ते अचेल शब्दसे कुत्सित अर्थात् जीर्णप्रायः वस्त्रकाही अर्थ करना उचित है. क्योंकि, नञ् ( नकार ) को षट् (६) अर्थमें सर्व विद्वानोंने माना है. इसवास्ते यूरोपीयन (पाश्चात्य ) पंडित जो स्वकल्पनासें जैन मतादि शास्त्रोंका . * जैसे कल्पसूत्र, आचारांग, उपासकदशांग उपोद्घातादिमें केइ पाश्चात्यविद्वानोंने करे हैं. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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