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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। ५३९ तथा पूर्वोक्त पुस्तकमेंही लिखा है कि--उत्तराध्ययनके २३ मे अध्ययनकी १३ मी गाथामें कहा है कि, पार्श्वनाथकी सामाचारीमूजब साधु ऊपरका और नीचेका कपडा पहरते थे; परंतु महावीरस्वामीकी सामाचारीमें कपडेकी मनाइ थी. जैनसूत्रोंमें नग्नसाधुका नाम वारंवार अचेलक लिखा है, जिसका अक्षरार्थ कपडेविनाके ऐसा होता है. ___ बौद्धलोक अचेलक, और निग्रंथके बीचमें कुछक तफावत रखते हैं. बौद्धोंके धम्मपद (धर्मपद ) नामके पुस्तकऊपर बुद्धघोषकी करी हुई टीकामें कितनेक भिक्षुसंबंधि ऐसें कहनेमें आया है कि, वे, अचेलकसे निग्रंथोंको विशेष पसंद करते हैं. क्योंकि, अचेलक तदन नग्न होते हैं, (सव्वासोअपटिच्छन्ना) परंतु निग्रंथ एक जातका कपडा नीतिमर्यादाकेवास्ते रखते हैं. कपडा रखनेका कारण बौद्धभिक्षुयोंने यह दिया है कि, नीतिमर्यादा सचवाती है-रहती है. यह कारण खोटा है; बौद्ध अचेलक, अर्थात् मंखलिगोशालेके और तिसके पहिले हुए किस संकिञ्च तथा नंदवच्छके अनुयायी समझने, ऐसें जानते हैं. और तिनके मज्झिमनिकायके ३६ मे प्रकरणमें अचेलकोंकी धर्मसंबंधी क्रियाओंका वर्णन भी लिखा है. इस ऊपरके लेखसे यह सिद्ध हुआ कि, निर्ग्रथमत, अर्थात् जैनमत, बौद्धमतसें पृथक् भिन्न मत है, और बौद्धमतसें प्राचीन है. अब हम प्रोफेसर हरमॅन जाकोबीके करे उत्तराध्ययनके २३ मे अध्ययनकी १३ मी गाथाके तरजुमेकी समालोचना करते हैं. । क्योंकि, उन्होंने जो अर्थ करा है, सो अपनी बुद्धीसे करा है, न तु जैनसंप्रदायानुसार; क्योंकि, जैनमतमें नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीकादिके अनुसार अर्थ करा हुआ मान्य है, नतु स्वबुद्धिउत्प्रेक्षित. जेकर स्वबुद्धिकी कल्पनासें अर्थ करे जावें, तब तो, अन्यमतोंके शास्त्रोंकीतरें जैनमतके शास्त्रोंके अर्थ भी, नाना पुरुषोंकी नाना कल्पनासे नाना प्रकारके हो जावेंगे; तब तो असली सर्व सच्चे अर्थ व्यवच्छेद हो जावेंगे; और उत्सूत्रार्थकी प्रवृत्ति होनेसें जैनमतही नष्ट हो जावेगा. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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