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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रिंशस्तम्भः। ऐसें क्रमसें दिकपालपूजन करे । तदपीछे फिर भी हाथमें पुष्पांजलि लेकर आर्या पढे॥ यथा ॥ ॥ आर्या ॥ दिनकरहिमकरभूसुतशशिसुतबृहतीशकाव्यरवितनयाः॥ राहो केतो क्षेत्रप जिनार्चने भवत सन्निहिताः॥१॥ यह पढके ग्रहपीठोपरि पुष्पांजलिक्षेप करे। तदपीछे पूर्वादिक्रमसें सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, चंद्र, बुध, बृहस्पति, इनको स्थापन करे. हेठ केतुको, और ऊपर क्षेत्रपालको स्थापन करे. । तदपीछे प्रत्येक ग्रहका पूजन करे। तद्यथा ॥ ॥ वसंततिलका ॥ विश्वप्रकाशकृतभव्य शुभावकाश । ध्वांतप्रतानपरिपातनसद्विकाश ॥ आदित्य नित्यमिह तीर्थकराभिषेके । कल्याणपल्लवनमाकलय प्रयत्नात् ॥ १॥ “॥ ॐ सूर्य इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति सूर्यपूजनम् ॥ १ ॥ ॥ मालिनी॥ स्फटिकधवलशुद्धध्यानविध्वस्तपाप । __ प्रमुदितदितिपुत्रोपास्यपादारविंद ॥ त्रिभुवनजनशवजंतुजीवानुविद्य । प्रथय भगवतो! शुक्र हे वीतविघ्नाम् ॥ १॥ “॥ ॐ शुक्र इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति शुक्रपूजनम् ॥ २॥ ॥ आर्या ॥ प्रबलबलमिलितबहुकुशललालनाललितकलितविघ्नहते। भौमजिनस्नपनेऽस्मिन् विघटय विनागमं सर्वम् ॥ १॥ "॥ॐ मंगल इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति मंगलपूजनम् ॥३॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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