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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org યુદ્ધ तत्त्वनिर्णयप्रासाद ॥ अनुष्टुप् ॥ अस्तांहः सिंहसंयुक्तरथ विक्रममंदिर ॥ सिंहिकासुत पूजायामत्र संनिहितो भव ॥ १ ॥ " ॥ ॐ राहो इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति राहु पूजनम् ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ॥ वृत्तम् ॥ फलिनीदलनील लीलयांतःस्थगित समस्तवरिष्ठविघ्नजात ॥ रवितनय प्रबोधमेतत् जिनपूजाकरणैकसावधानान् ॥ १ ॥ “ ॥ ॐ शने इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति शनिपूजनम् ॥ ५ ॥ ॥ द्रुतविलंबितपाठः ॥ 66 अमृतवृष्टिविनाशित सर्वोपचितविघ्नविषः शशलांछनः ॥ वितनुतात्तनुतामिह देहिनां प्रसृततापभरस्य जिनाचने ॥ १ ॥ ॥ ॐ चंद्र इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति चंद्रपूजनम् ॥ ६ ॥ 64 ॥ वृत्तम् ॥ बुधविबुधगणाच्चितांत्रियुग्म प्रमथितदैत्य विनीतदृष्टशास्त्र ॥ जिनचरणसमीपगोधुनात्वं रचय मतिं भवघातन प्रकृष्टाम् ॥१॥ “ ॥ ॐ बुध इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति बुधपूजनम् ॥ ७ ॥ ॥ वृत्तम् ॥ सुरपतिहृदयावतीर्णमंत्र प्रचुरकलाविकलप्रकाश भास्वन् ॥ निपचिणाभिषेककाले कुरु बृहतीवर विघ्नविप्रणाशम् ॥ १॥ “ ॥ ॐ गुरो इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति गुरुपूजनम् ॥ ८ ॥ ॥ द्रुतविलंबित ॥ निजनिजोदययोगजगत्रयीकुशलविस्तरकारणतां गतः ॥ भवतुकेतुरनश्वरसंपदां सतत हेतुरवारितविक्रमः ॥ १ ॥ “ ॥ ॐ केतो इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति केतुपूजनम् ॥ ९ ॥ 66 " For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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