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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ર तत्त्वनिर्णयप्रासाद तियसासुरेहिं हविओ ते धन्ना जेहिं दिसि ॥ ९ ॥ यह पढके कलशोंकरके जिनप्रतिमाको अभिषेक करे । तदपीछे बडे छोटेके क्रमकरके सर्व पुरुष स्त्रियां भी गंधोदकोंकरके स्नात्र करे. । तदपीछे अभिषेकके अंतमें गंधोदकपूर्ण कलश लेके वसंततिलकावृत्त पढे । ॥ वसंततिलका ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir यथा ॥ संघे चतुर्विध इह प्रतिभासमाने श्रीतीर्थपूजनकृतप्रतिभासमाने ॥ गंधोदकैः पुनरपि प्रभवत्वजस्त्रं स्नानं जगत्रयगुरोरतिपूतधारैः॥१॥ यह पढके जिनपादोपरि कलशाभिषेक करके स्नात्रनिवृत्ति करे । तदपीछे पुष्पांजलि लेके वृत्त पढे । यथा ॥ ॥ प्रहर्षिणी ॥ इंद्राने यम निर्ऋते जलेश वायो वित्तेशेश्वर भुजगा विरंचिनाथ ॥ संघट्टाधिकतमभक्तिभारभाजः स्नात्रेस्मिन् भुवनविभोः श्रीयं कुरुध्वम् ॥ १ ॥ यह पढके स्नानपीठके पास रहे कल्पित दिकूपालपीठऊपरि, पुष्पांजलिक्षेप करे. । तदपीछे प्रत्येक दिशामें यथाक्रमकरके दिकूपालोंको स्थापन करे. । पीछे एकैक दिक्पालका पूजन 1 करे 1 यथा ॥ ॥ शिखरिणी ॥ सुराधीश श्रीमन् सुदृढतरसम्यक्त्ववसते । शचीकांत पांतस्थितविबुधकोट्यानतपद || ज्वलद्वज्ञाघातक्षपितदनुजाधीशकटक । प्रभोः स्नात्रे विघ्नं हर हर हरे पुण्यजयिनाम् ॥ १ ॥ “॥ ॐ शक्र इह जिनस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ । इदं जलं गृहाण २ | गंधं गृहाण २ । पुष्पं गृहाण २ । धूपं गृहाण २ । For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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