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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org त्रिंशस्तम्भः । यह पढके पुष्पांजलि क्षेपण करे. ॥ इतिपुष्पांजलिक्षेपः ॥ ॥ इंद्रवज्रा ॥ तस्येशितुः प्रतिनिधिः सहजश्रियाढ्यः । पुष्पैर्विनापि हि विना वसनप्रतानैः ॥ गंधैर्विना मणिमयाभरणैर्विनापि । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir यह कर्पूर सिल्हाधिककाकतुंडकस्तुरिका चंदनवंदनीयः ॥ धूपो जिनाधीश्वरपूजनेऽत्र सर्वाणि पापानि दहत्वजस्रम् ॥ १ ॥ पढके सर्वपुष्पांजलियों के बीच में धूपोत्क्षेप करे. ॥ और शक्रस्तव पढे. ॥ तदपीछे जलपूर्ण कलश लेके, श्लोक और वसंततिलका पढे ॥ ॥ अनुष्टुप् ॥ केवली भगवानेकः स्वाद्वादी मंडनैर्विना ॥ विनापि परिवारेण वंदितः प्रभुतोर्जितः ॥ १ ॥ यथा ॥ ॥ वसंततिलका ॥ ४७९ लोकोत्तरं किमपि दृष्टिसुखं ददाति ॥ २ ॥ यह पढके प्रतिमाको कलशाभिषेक करे. ॥ इतिप्रतिमायाः कलशाभिकः ॥ पुष्प अलंकारादि उत्तारके, कलशाभिषेक करके पीछे फिर पुष्पांजलि लेके, दो काव्य पढे. 1 यथा ॥ ॥ शार्दूलवृत्तम् ॥ विश्वानंदकरी भवांबुधितरी सर्वापदां कर्त्तरी । मोक्षाध्वैकविलंघनाय विमला विद्या परा खेचरी ॥ दृष्ट्या भावितकल्मषापनयने बद्धाप्रतिज्ञा दृढा । रम्यात्प्रतिमा तनोतु भविनां सर्वे मनोवांछितम् ॥ १ ॥ ॥ आर्या ॥ For Private And Personal परमतररमासमागमोत्थप्रसुमरहर्षविभासिसन्निकर्षा ॥ जयति जगति जिनेशस्य दीप्तिः प्रतिमा कामितदायिनी जनानाम् २
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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