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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૭૮ तत्त्वनिर्णयप्रासाद॥ शार्दूल ॥ यद्विश्वाधिपतेः समस्ततनुभृत्संसारनिस्तारणे । तीर्थे पुष्टिमुपेयुषि प्रतिदिनं वृद्धिं गतं मंगलम् ॥ तत् संप्रत्युपनीत पूजनविधौ विश्वात्मनामर्हतां । भूयान्मंगलमक्षयं च जगते स्वस्त्यस्तु संघाय च ॥ ४ ॥ इन चारों वृत्तों करके मंगल प्रदीप करे। पीछे शक्रस्तव पढे ॥ इतिजिनार्श्वनविधिः ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ अतिशय करी अर्हद्भक्तिवाला कोइक श्रावक, नित्य, वा पर्वदिनमें, वा किसी कार्यांतर में, जिनस्नात्र करनेकी इच्छा करे, तिसका विधि यह है । प्रथम स्नानपीठके ऊपर, दिकूपालग्रह अन्य दैवतपूजन वर्जके, पूर्वोक प्रकार करके जिनप्रतिमाको पूजके, मंगलदीप वर्जित आरात्रिक करके, पूर्वोपचारयुक्त श्रावक, गुरुसमक्ष संघके मिले हुए, चार प्रकारके गीतवाद्यादि उत्सवके हुए पुष्पांजलि हाथमें लेके । 66 , “ ॥ नमो अरहंताणं नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॥” यह पढके दो वृत्त (छंद) पढे । यथा ॥ ॥ शार्दूलवृत्तम् ॥ कल्याणं कुलवृद्धिकारि कुशलं श्लाघामत्यङ्गुतं । सर्वाघप्रतिघातनं गुणगणालंकारविभ्राजितम् ॥ कांतिश्रीपरिरंभणं प्रतिनिधिप्रख्यं जयत्यर्हतां । ध्यानं दानवमानवैर्विरचितं सर्वार्थसंसिद्धये ॥ १ ॥ ॥ मालिनीवृत्तम् ॥ भुवनभविकपापध्वांतदीपायमानं । परमतपरिघातप्रत्यनीकायमानम् ॥ धृति कुवलयनेत्रावश्यमंत्रायमानं । जयति जिनपतीनां धानमत्युत्तमानाम् ॥ २ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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