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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૪૮૦ तत्त्वनिर्णयप्रासाद I यह पढके फिर पुष्पांजलिक्षेप करे. । पीछे पूर्वोक्त ' कर्पूर सिल्हा ' वृत्तकरके धूपोत्क्षेप करे, और शक्रस्तव पढे । पीछे फिर पुष्पांजलि हाथमें लेके, दो काव्य पढे. ॥ यथा ॥ ' ॥ पृथिवीवृत्तम् ॥ न दुःखमतिमात्रकं न विपदां परिस्फूर्जितं । न चापि यशसां क्षितिर्न विषमा नृणां दुस्थता ॥ न चापि गुणहीनता न परमप्रमोद क्षयो । जिन्नाञ्चनकृतां भवे भवति चैव निःसंशयम् ॥ १ ॥ ॥ मंदाक्रांता ॥ एतत्कृत्यं परममसमानंदसंपन्निदानं । पातालोकः सुरनरहितं साधुभिः प्रार्थनीयम् ॥ सर्वारंभापचयकरणं श्रेयकां सं निधानं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir साध्यं सर्वैर्विमलमनसा पूजनं विश्वभर्तुः ॥ २ ॥ यथा ॥ यह पढके फिर पुष्पांजलिक्षेप करे । तदपीछे धूप हाथमें लेके पढे । ॥ शार्दूल ॥ कर्पूरागरुसिल्हचंदनबलामांसीशशैलेयक । श्रीवासद्रुमधूपरालघुसृणैरत्यंतमामोदितः ॥ व्योमस्थ प्रसरच्छशांककिरणज्योतिः प्रतिच्छादको । धूपोत् क्षेपकृतो जगत्रयगुरोस्सौभाग्यमुत्तंसतु ॥ १ ॥ ॥ आर्या ॥ सिद्धाचार्यप्रभृतीन् पंच गुरून् सर्वदेवगणमधिकम् ॥ क्षेत्रे काले धूपः प्रीणयतु जिनार्च्चने रचितः ॥ २ ॥ यह पढके धूपोत्क्षेप करे । शक्रस्तव पढे ॥ पीछे फिर पुष्पांजलि लेके ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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