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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथैकोनत्रिंशस्तम्भः। सर्व अक्षर अडसठ (६८) तिसका उपधान ऐसें है. ॥ नंदि, देववंदन, कायोत्सर्ग, क्षमाश्रमण, वंदनक, प्रमुख नमस्कारश्रुतस्कंधके अभिलापसे पूर्ववत् जाणना. और आभिमंत्रित वासक्षेप भी पूर्ववत् जाणना.। तहां पूर्वसेवामें एकभक्तके अंतरे उपवास पांच, एवं दिन ११, तहां प्रथम नदिदिनमें एकभक्त, वा निविगइ, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकभक्त, चौथे दिन उपवास, पांचमे दिन एकभक्त, छठे दिन उपवास, सातमे दिन एकभक्त, आठमे दिन उपवास, नवमे दिन एकभक्त, दशमे दिन उपवास, एकादशमे दिन एकभक्त. ऐसे द्वादशम तप पूर्व सेवामें करना. । तहां पंचपरमेष्टि पदांकी वाचना नंदिविना भी देनी. शक्रस्तवका पढना, वासक्षेपपूर्वक तीन नमस्कारोंका पढना, सर्व वाचनायोंमें जाणना.। तहां श्रेणिबद्ध आठ आचाम्ल करने, ऐसे एकोनविंशात (१९) दिन. तदपीछे वीसमे दिन एकभक्त, इकवीसमे दिन उपवास, बावीसमे दिन एकभक्त, तेइवीसमे दिन उपवास, चौवीसमे दिन एकभक्त, पच्चीसमे दिन उपवास. । ऐसें अष्टम तप उत्तर सेवामें। तदपीछे चूलिकाकी वाचना ॥ एसो पंच यहांसें लेके हवइ मंगलं । इति नमस्कारस्योपधानं ॥ तदपीछे तिसकी वाचना, तिसका विधि यह है. ॥ पहिला सामाचारीका पुस्तक पूजना, पीछे मुखवस्त्रिकासें मुख ढांकके ऐर्यापथिकी (इरियावहियं) पडिक्कमके क्षमाश्रमणपूर्वक कहैं. ॥ “॥ भगवन् नमुक्कारवायणासंदिसावणियं वायणाले वावणियं वासक्खेवं करेह । चेइयाइं च वंदावेह ॥” । ऐसें नंदि करके छठवीसमे दिनमें एकभक्त करें, वाचना देनी चूलिकाके चारों पदोंके सर्व उपधानोंमें प्रतिदिन अव्यापार पौषध करना, सवेरे २ पौषध पारके पुनः २ (फिर२) नित्य पोषध ग्रहण करना, और नमस्कार सहस्र गुणना. ॥ इतिप्रथममुपधानम् ॥ १॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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