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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४९२ . तत्वनिर्णयप्रासादऐर्यापथिकीका भी उपधान ऐसेंही है. आदिकी, और अंतकी, दोनोंही नंदि तिसके-ऐर्यापथिकीके अभिलापसें करनी.। तहां वाचनामें आठ अध्ययन, और वाचना दो,-एक पांच पदोंकी और दूसरी तीन पदोंकी; पांच पदोंकी एक चूलिका ॥ “॥ इच्छामि पडिकमिउं इरिआवहिआए विराहणाए। १। गमणागमणे ।२। पाणकमणे, बीयकमणे, हरियकमणे ।३। ओसाउत्तिंगपणगदगमट्टीमकडासंताणासंकमणे।४। जे मे जीवा विराहिया ।५। यह एक वाचना, द्वादशम तपके पीछे देते हैं. ॥१॥ " ॥ एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ।६। अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।७। तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्टाए, ठामि का उस्सग्गं । ८॥” यह दूसरी वाचना, आठ आचाम्लके अंतमें देनी.॥२॥ इसके पीछे ॥ "अन्नथ्थ उससिएणं,नीससिएणं,खासिएणं,छीएणं, जंभाइएणं उडुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए, पित्तमुच्छाए।१। सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमहिं खेलसंचालेहि,सुहुमेहिं दिहिसंचालेहिं । २। एवमाइएहिं, आगारेहि, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो। ३। जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, न मुक्कारेणं, न पारोमि ।४। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ।५॥" यह चूलिकाकी For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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