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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३५ ) वालेमें विद्यमान है इस सबबसे कितनेही वर्षोंतक जमीतराय, और जोधामल्लकी संतानका * आपस में मोहबतका बरताव रहा. "C Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भवितव्यता के बसें "राजकुंवर" और "जमीतराय" तो अपने वतन चलेगये. और "गणेशचंदजी" लेहरा गाम मेंही रहने लगे, और वहांही बिक्रम संवत् १८९३ चैत्रशुदि प्रतिपदा गुरुवार के रोज 'श्रीआत्मारामजीका " "रूपादेवी" माता की कूख से जन्म हुआ. श्री आत्मारामजीकी माता पिताने ब्राह्मणों से पूछके "आत्माराम " नाम रखा. 66 जन्म कुंडली नष्टोद्दिष्टसे ॥ १० ४ मं. बृ. इस समय (लेहरागाम ) " अतरसिंघ ” नामा " सोढी " (शी ? लोकोंके गुरू) के ताबेमें था. इस सबबसे सोढी अतरसिंघ, और रा.चं. 'गणेशचंदजीकी " आपसमें बहोत प्रीति थी. एक दिन सोढी अतरसिंघने श्री आत्मारामजीको माता रूपादेवीकी गोद में देखा, और बुद्धिके प्रभावसे ऐसा निश्चय किया कि, यह बालक बडा तेजप्रतापवाला होवेगा. पिछे अतरसिंघ सोढीने कहा कि " इस बालकके ऐसे सुंदर लक्षण हैं कि, जिससे यह लडका बडाभारी राजा होवेगा ! अथवा ऐसा साधु होवेगा कि, जिसके चरणों के राजा महाराजा भी सेवक होवेंगे ! और यह लड़का किसी तरह भी तुमारे पास नहीं रहेगा. इस लिये यह लडका तुम मुझे दे दो; और मैं इसको अपनी कुल मिलकतका मालिक करूंगा, " परंतु माता पिताने यह बातको स्वीकार नहीं किया. तथापि सोढी अतरसिंघ के दिलसें यह बात दूर नहीं हुई, बलकि निरंतर इसही बातका ख्याल रखता रहा, और श्री आत्मारामजी से बहुत प्यार करता रहा. ठेकेदार राजकुंवरके वतन पहुंचने से गणेशचंदजीके भाई लक्खुमल्ल और चाचेके पुत्र देवीदत्तामल्लको गणेशचंदजीका पता बहोत कालके पीछे मालूम होनेसे दिल खुश होगया. और उसी बखत अपने भाई " गणेशचंदजी " को अपने वतन ले जानेकेलिये आये. अपने भाई गणेशचंदजीको देखतेही बहुत खुश होगये. बु.शु.सू. १२ २ For Private And Personal ११ ५ दोहा - पाया प्रतिहि बियोगसे, जसतन दुःख भरपूर ॥ फिर मिलने से वोही तन पावे सुख भरपूर ॥ १ ॥ V ७ श.क. गणेशचंदजीकी गोद में छोटी उमरवाले बडे तेजवाले अपने भाईके पुत्र श्री आत्मारामजीको देके बहुतही प्रसन्न हुये. और दोनों भाइयोंने अपने भाई गणेशचंदजी को अपने वतन लेजाने के वास्ते बहुत मेहनत की; परंतु इस देशकी मोहबत, और दाना पानीने गणेशचंदजीको किसी तरह भी जाने न दिया. इस वास्ते लाचार होके कितनेक दिन वहां रहके अपने वतनको चलेगये. और चलने के समय अपने भाईके पुत्र श्रीआत्मारामजीका नाम, " दित्ता " रखगये. और कहते गये कि, "इस बालकका अच्छी तरह ख्याल रखना. " "रत्नंयत्नेनरक्षयेत् " भावार्थ-रत्नकी यत्न विक्रम संवत् १९३७ जब श्रीआत्मारामजी महाराजजीका चौमासा शहेर गुजरांवालेमें था, तब जोधा मल्लकी संतान के राधामल्ल और हरदयालमल्ल श्रीमहाराजजीके दर्शन के वास्ते गये थे, तब पिछली मुलाकतके सबबसे जमीतराय, उनसे बहोत महोबत से मिला था. बलकि देशाचारके अनुसार राधामल्लके बेटे ईश्वरदास और बशाखीमल्लके पुत्र हरदयालमल्ल को कपडे और मिठाई वगैरह दी थी.
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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