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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (३६) पूर्वक रक्षा करना चाहिये. तब मातापिताने भी “दित्ता'नाम स्वीकार कर लिया. और उस दिनसे " श्रीआत्मारामजी" "दित्ता" के नामसे प्रसिद्ध हुवे. कितनेक कालपीछे लेहरा गाममें व्यवहाराभावसे गणेशचंदजी अपनी भार्या रूपदेवीको और दित्ताको लेकर आनंदपुर माखोवाल कीर्चिपुरमें, जहां सोढी अतरसिंघ रहता था जा रहे; और सोढी अतरसिंघने बडी खुशीसे गणेशचंदजीको अपने सीपाइयोंमें नौकर रखे. और पशुयोंके घास चारेकी जमीन (चरागा-बीड) के रक्षक ठहराये. और अतरसिंघ सोढी निरंतर दित्ता (श्रीआत्मारामजी) को लेनेके ख्यालमेंही रहा. इसी सबबसे कितनेक दिनोंपिछे सोढी अतरसिंघने, गणेशचंदजीको अपनी जमीनमें ब्राह्मणोंकी गौयां चरने देनेके तोहमतसे तकसीरवार ठहराकर, पैरोंमें बेडी पहनाकर कहा कि, "जो तूं अपने पुत्र आत्माराम (दित्ता) को मुझे देवेगा तो, मैं तुजे छोडूंगा; अन्यथा किसी प्रकारसे भी तेरा छूटकारा न होवेगा.” परंतु गणेशचंदजी जोरावर होनेके सबबसे अवसर देखके बेडीको तोडके अपनी भार्या रूपदेवी और पुत्र दित्ता(आत्माराम)को लेके रातके वखत भागगये, और रुडीवाला गाममें आ रहे. यहां, गणेशचंदजीकी भार्या रूपादेवीसे दूसरा पुत्र पैदाहुआ. अनुमान चार वर्ष वहां रहके कितनेही आदमियोंके और सावण बामण तथा जोधामल्ल वगैरहके कहनेसे फिर लेहरा गाममें चले आये. और लेहरा गाममें खेतीका काम करके अपना गुजारा करते रहे, और जोधामल्लकी मोहबतसे अमन चैन उडाते रहे. अब इस बखत पिछला जमाना (शिखेसाई जमाना) फिरगया था, और सरकार महाराणी विक्टोरीयाका अमल होगया था, जिससे हरतरहका आराम हुआ; और देशकी ठीक ठीक सारवार होती रही. न्यायके सबबसे मानो बकरी और सिंह एक घाटपर पानी पीने लगे, अर्थात् छोटे बड़े सवको अदल इनसाफ मिलता रहा, मुसाफर निडर होके रस्तेपर चलने लगे थे; कोई नहीं पूछसकता था कि तेरे मुखमें कितने दांत है. सोना उछालता चलाजावे,न चोरका डर,न डाकूका डर रहा था. क्योंकि, सबके सिरपर अंग्रेजी राज्य प्रतापका ऐसाही डर घूम रहा था. परंतुःदोहा-होणहार हिरदे वसे, विसर जाय सुद्ध बुद्ध ॥ जो होणी सो होत है, वैसी उपजे बुद्ध ॥१॥ इस कहावत मुजब ऐसे नाजुक बखतमें गणेशचंदजी आठ आदमीयोंके साथ मिलकर फिर डाका डालना शुरु किया. परन्तु आखर उसको इस पापका फल मिला सो यह कि,पकडे गये. कहावत भी है कि “सौ दिन चौरके और, एक दिन साधका."इस अपराधमें अदालतसे दश वर्षकी कैदकी सजा पाई और कैदियोंको आग्रेके किल्लेमें भेजनेका हुकम हुआ.चलते बखत गणेशचंदजीने अपने पुत्र दिचा (आत्माराम) को जोधामल्ल ओसवालको सोपकर कहा कि, " इसकी सार संभाल रखना क्योंकि यह तुह्माराही पुत्र है, इसवास्ते इसको सांसारिक विद्या पढाना, जिससे यह व्यापारादि करके अपना गुजारा करता रहे, बहुत क्या कहुं मैं इसको तुमकोही सोपताहुं, इसका नफा नुकसान तुमारेही अखतीयार है.” जोधामल्लने रुदन करके कहा कि, जुदाई तेरी किसको मंजूर है; जमीन सख्त और आसमान दूर है. परंतु कर्मोके आगे किसीका भी जोर नहीं चलता है: For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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