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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (३४) परिवारके आठ घर कलशगाममें पूर्वोक्त परंपराके अब विद्यमान हैं.और "पत्याल "गाम जो खुशाबके पास बसता है, वहां भी "आत्मारामजी” के नजदीकके साकसंबंधी कपूरक्षत्रियोंके चालीश घर वसते हैं. (वंशवृक्ष देखो.) “दीवानचंद और उसकी भार्या "महादेवी" अपने दोनों पुत्रों और लडकीको छोटी उमरमें छोडकर गुजर गयेथे. इस वास्ते दोनों पुत्र (लक्खुमल गणेशचंद) और पुत्री (हुकमदेवी) तीनों जने अपने पिताके भाई (चाचे ) श्यामलालके घर रहतेथे परंतु "श्यामलालकी" भार्याकी तबियत सखत होनेसे, “गणेशचंद" दुःखी होकर कितनेक दिन पीछे बिना कहे, वहांसें चलनिकला; और रामनगरके पास कसबा फालीयेमें आकर थानेदार (पोलीस ओफिसर) हुआ. और वहांही "कवरसेन' नामके पूरी क्षत्रिय कुंजाहीकी बेटी " रूपदेवी के साथ बिवाह होगया. “गणेशचंद” शूरवीर होनेसे बहोत सीपाइयोंके साथ भाइबट्ठ आदि नगरोंकी लडाइयोंमें शामिल रहतेथे. कितनेक काल पिछे महाराज "रणजीतसिंह"के राज्यमें हरिकापत्तनपर एक हजार घोडेस्वारोंको जानेका हुक्म हुआ. उनके साथ गणेशचंदकी भी बदली हुई. वहां (हरिकापत्तनपर )" गणेशचंदजी बहुत मुद्दत तक रहे. इसीवास्ते वहांके “ नंदलाल" ब्राह्मण, और कितनेक ओसवालोंके साथ बहुत प्रीति होगईथी. जिससे जब रिसालेकी बदली हुई, तब गणेशचंदजी नोकरी छोडकर वहांही रहगये. __ "नंदलाल"ब्राह्मण बडा शूरवीर और डाकू (धाडवी) था.तिसकी संगतसे "गणेशचंदजी भी डाके डालने लगगये.उनके साथ,और भी आसपासके जौनेकी,लेहरा,गंडीवींड,रूडीवाला,सरहाली इत्यादि गामोंके डाकू मिलजानेसें,सब मिलके डाके डालने लगे.उस समयमें सरहाली गाममें "मूलामिश्र' उसका पितामह (बाबा) रहता था.उसके तीन बेटे थे.उनमेंसे "वशाखीराम" तो पंडित था, और अमृतसरमें रहता था, और "देवीदत्ता” मूलामिश्रका बाप, सरहालीमेंही रहता था. और तीसरा "आज्ञाराम" जौनेकी गाममें दुकान करता था, और गणेशचंदजीका मित्र, और मेहरबान था, और डाके डालने में भी शामिल था. इसी तरह गाम रूडीवालामें "विशनसिंघ” का बाप "कहानसिंध'' गणेशचंदजीका मित्र रहता था. गणेशचंदजी प्रायःकरके अपने मित्र कहानसिंधकी मुलाकातके वास्ते रूडीवालामें आते जाते थे. वहां (रूडीवालामें) लेहरा गामकी एक लडकी "कर्मो व्याही थी, और विशनसिंघके घरकेपास रहती थी.इसवास्ते कर्मों भी गणेशचंदजीको अच्छी तरांह जानती थी, और इसी सबबसे गणेशचंदजीका "लेहरा" गाममें रहना हुआ. क्योंकि "राजकुंवर नामका क्षत्रिय, टुंकावाली जिल्ला गुजरांवालेका,जीराम महाराज रणजीतसिंहजीके तरफसे ठेकेदार हुआ करता था. अपने वतनकी मोहबतसे गणेशचंदजी उससे मिलने के लिये जीरकेपास लेहरा गाममें रहने लगे. कर्मोकी जान पिछान होनेसें लेहरामें रहना उनको मुश्किल नहीं हुआ, अर्थात थोडेही कालमें बहुत लोगोंसे मोहबत होगई. गणेशचंदजी लेहरा गामसे प्रायः निरंतर राजकुंवरसे मिलनेकेलिये जीरेगाममें आते थे,इस सबबसें जीरेका रहनेवाला "जोधामल" ओसवाल, जोकि खानदानी, लायक, और बुजूर्ग था, उसकेसाथ गणेशचंदजीकी मुलाकात हुई. जोधामल्लका गजकुंवर ठेकेदारके साथ बहुत स्नेह था. राजकुंवरका बेटा "जमीतराय" जीरेमें रहता था, जिसके बेटे " केदारनाथ "" और "बद्रीनाथ '' बडे नामी आदमी अब शहर गुज For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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