SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासाद गुरुत्यागे भवेदुःखं मंत्रत्रत्यागे दरिद्रता ॥ गुरुमंत्र परित्यागे सिद्धोऽपि नरकं व्रजेत् ॥ १३ ॥ इति ज्ञात्वा सुरगृहीतं कुर्या मंत्रममुं सदा ॥ सेत्स्यति सर्वकार्याणि तवास्मान्मंत्रतो ध्रुवम् ॥ १४ ॥ गुरुने ऐसे शिक्षा दिया हुआ उपनेय तीन प्रदक्षिणा करके " नमोस्तु २" ऐसें कहता हुआ, गुरुको नमस्कार करे. पीछे गुरुको स्वर्णका जिनोपवीत, श्वेत वस्त्र रेशमी, और स्वर्णमोंजी स्वसंपदानुसारें देवे. और सर्वसंघको भी तांबूल वस्त्रादि देवे ॥ इत्युपनयने व्रतबंधविधिः || अथ व्रतादेशविधि लिखते हैं. ॥ तिसही अवसर में, तिसही संघके संगममें, तिसही गीतवाजंत्रादि उत्सवमें, तिसही वेदचतुष्किकामें, प्रतिमास्थापन संयोगमें, व्रतादेशका आरंभ करे. तिसका यह कम है. । गृह्यगुरु, उपनीत पुरुषके कार्पास रेशमी अंतरीय उत्तरीय वस्त्रे दूर करके मौंजी जिनोपवीत कौपीन येह वस्तुयों तिसकी देह में तैसेंही स्थापके, तिसके ऊपर कृष्णसाराजिन ( कालामृगचर्म ) वा, वृक्षके वल्कलका वस्त्र पहिरावे. । हाथमें पलाशका दंडा देवे. और इस मंत्र को पढे. 66 ॥ ॐ ॐ ब्रह्मचार्यसि । ब्रह्मचारिवेषोऽसि अवधित्रह्मचयसि । धृतब्रह्मचयसि । धृताजिनदंडोसि । बुद्धोऽसि । प्रबुद्धोऽसि । धृतसम्यक्त्वोऽसि । दृढसम्यक्त्वोसि । पुमानसि । सर्वपूज्योsसि । तदवधिर्ब्रह्मव्रतं आगुरुनिदेशं धारयेः ॐ ॐ ॥ 35 ऐसें पढके व्याघ्रचर्ममय आसनके ऊपर, वा कल्पित काष्ठमय आसनके उपर उपनीतकों बिठलावे. तिसके दक्षिण हाथकी प्रदेशिनी अंगुमें दर्भसहित कांचनमयी वोडश १६ मासे प्रमाण ( पांच गुंजाका एक मासा जाणना ) पवित्रिका मुद्रा पहरावे. । For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy