SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादकीरूप वेदी करणी, अर्थात् चौतडा करणा, वेदीप्रतिष्ठा विवाहाधिकारसें जाणनी. तिस वेदीचतुष्किकाके ऊपर समवसरणरूप चतुर्मुख जिनबिंब अर्थात् चौमुखा स्थापन करे, तिसको पूजके गुरु, जिसने सदश श्वेतवस्त्र पहिना है, वस्त्रका उत्तरासंग करा है, अक्षत नालिकेर क्रमुक हाथमें लिये हैं, ऐसे उपनेयको समवसरणको तीन प्रदक्षिणा करवावे. । तदपीछे गुरु उपनेयको वामे पासे स्थापके, पश्चिमदिशाके सन्मुख जिसका मुख है, तिस जिनबिंबके सन्मुख बैठके प्रथम ऋषभ अर्हत् देवस्तोत्रयुक्त शक्रस्तव पढे. । फेर तीन प्रदक्षिणाकरके उत्तराभिमुख जिनबिंबके सन्मुख तैसेंही शकस्तव पढे;। ऐसेंही त्रिप्रदक्षिणांतरित पूर्वाभिमुख, दक्षिणाभिमुख, जिनबिंबोंके आगे भी शकस्तव पढे. मंगलगीतवाजंत्रादिकोंका तिसवखत विस्तार करणा. । तदपीछे तहां आचार्य उपाध्याय, साधु, साध्वी, श्रावक श्राविकारूप श्रीश्रमणसंघको एकत्र करे. तदपीछे प्रदक्षिणा शक्रस्तवपाठके अनंतर गृह्यगुरु, उपनयनके प्रारंभवास्ते वेदमंत्रका उच्चार करे. और उपनेय जो है, सो दूर्वाफलादिकरके हस्तपूर्ण करके जिन आगे हाथ जोडके अर्थात् अंजलिकरके खडा होके श्रवण करे. ॥ उपनयनारंभ वेदमंत्रो यथा ॥ "ॐअहँ अर्हन्योनमः। सिद्धेश्योनमः । आचार्येभ्योनमः । उपाध्यायेभ्यो नमः। साधुभ्यो नमः । ज्ञानाय नमः। दर्शनाय नमः । चारित्राय नमः । संयमाय नमः। सत्याय नमः । शौचाय नमः । ब्रह्मचर्याय नमः। आकिंचन्याय नमः । तपसे नमः । शमाय नमः। माईवाय नमः। आजवाय नमः । मुक्तये नमः । धर्माय नमः। संघाय नमः। सैद्धांतिकेभ्यो नमः। धर्मोपदेशकेभ्यो नमः । वादिलब्धिभ्यो नमः । अष्टानिमित्तज्ञेभ्यो नमः । तपस्विभ्यो नमः । विद्याधरेभ्यो नमः । इहलोकसिद्धेभ्योनमः । कविभ्यो नमः। लब्धिमयो नमः । ब्रह्मचारिभ्यो नमः । For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy