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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्विंशस्तम्भः । ३५५ मृगशिर, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, हस्त स्वाति, चित्रा, पुष्य, अश्विनी, इन नक्षत्रों में मेखलाबंध, और मोक्ष करणा, आचार्यवर्य कहते हैं. । गर्भाधान वा जन्मसें आठ वर्षमें ब्राह्मणोंको मौंजीबंध कथन करते हैं, क्षत्रियोंको इग्यारह (११) वर्षमें, और वैश्योंको बारमे वर्षमें. । वर्णाधिपके बलवान हुए उपनीतिक्रिया हितकारिणी होती है, अथवा सर्व वर्णोंको गुरु चंद्र सूर्य बलवान् हुए, हित है. । बृहस्पतिवार होवे, बृहस्पति बलवान् होवे, वा केंद्रगत होवे, तो, द्विजोंको उपनयन श्रेष्ठ है. और बृहस्पति तथा शुक्र नीच घरमें होवे, शत्रुके घरमें होवे, वा पराजित होवे तो, श्रवणविधीमें स्मृतिकर्म हीन होवे | लग्नमें बृहस्पति होवे, त्रिकोणमें शुक्र होवे, और शुक्रांशमें चंद्रमा होवे तो वेदवित होवे; शुक्रसहित सूर्य लग्नमें शनि के अंशमें स्थित होवे, तदा प्रोज्झितविद्याशील कृतघ्न होवे । केंद्र में बृहस्पति होवे तो, स्वअनुष्ठानमें रक्त होवे, प्रवरमतियुत होवे. शुक्र होवे तो, विद्या सौख्य अर्थयुक्त होवे. बुध होवे तो, अध्यापक होवे, सूर्य होवे तो, राजाका सेवक होवे, मंगल होवे तो, शस्त्रवृत्तिवाला होवे. चंद्रमा होवे तो, वैश्यवृत्तिवाला होवे. शनि होवे तो, अंत्यजों का सेवक होवे । शनिके अंशमें मूर्खता उदय होवे, सूर्यके भागमें क्रूरपणा होवे, मंगलके अंशमें पापबुद्धि होवे, चंद्रांश में अतिजडपणा होवे, बुधांश होवे तो पटुपणा होवे, गुरुशुक्र के भागमें सुज्ञपणा होवे. । सूर्यसहित बृहस्पति होवे तो निर्गुण होवे अर्थहीन होवे, मंगलसहित सूर्य होवे तो क्रूर होवे, बुधसहित होवे तो पटु होवे, शनिसहित होवे तो आलस और निर्गुण होवे, शुक्र और चंद्रमासहित होवे तो बृहस्पतिवत् जाणना. । पूर्वोक्त निर्दोष नक्षत्रोंमें मंगलविना अन्यवारोंमें सुतिथिमें दिनशुद्धिमें दिनमें शुभग्रहयुक्त लग्न में । विवाहवत् त्याज्य नक्षदिनमासादिको वर्ज देवे. ग्रहनिर्मुक्त पांचमे लग्नमें व्रत आचरे ॥ प्रथम यथासंपत्तिकरके उपनेय पुरुषको सात, नव, पांच वा तीन, दिनतक सतैल निषेक स्नान करावे तदपीछे लग्नदिनमें गृह्यगुरु, तिसके घरमें ब्राह्म मुहूर्त्त में पौष्टिक करे. तदनंतर उपनेयके शिरपर शिखावर्जके वपन मुंडन करावे, पीछे वेदी स्थापन करे, तिसके मध्य में वेदीचतुष्किका चौ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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