SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चतुर्विंशस्तम्भः निष्परिग्रहेभ्यो नमः । दयालुभ्यो नमः । सत्यवादिभ्यो नमः । निःस्पृहेभ्यो नमः । एतेभ्यो नमस्कृत्यायं प्राणी प्राप्तमनुष्यजन्मा प्रविशति वर्णक्रमं अर्ह ॐ ॥” Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 66 ऐसें वेदमंत्र का उच्चार करके फिर भी पूर्ववत् तीन २ प्रदक्षिणा करके चारों दिशामें युगादिदेव स्तवसंयुक्त शक्रस्तव पाठ करे। तिस दिनमें, जल जवान भोजन करके आचाम्लका प्रत्याख्यान उपनेयको करावे । तदपीछे उपनेयको वामे पासे स्थापके सर्वतीर्थोदकोंकरके अमृतामंत्रकरके कुशाग्रोंसें सिंचन करे. । तदनंतर परमेष्ठिमंत्र पढके 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व्वसाधुभ्यः ऐसा कहके, जिन प्रतिमा के आगे उपनेयको पूर्वाभिमुख बैठावे; तदपीछे गृह्यगुरु, चंदनमंत्रकरके अभिमंत्रण करे. 11 चंदनमंत्रो यथा ॥ ॥ ॐ नमो भगवते, चंद्रप्रभजिनेंद्राय, शशांकहारगोक्षीरधवलाय, अनंतगुणाय, निर्मलगुणाय, भव्यजनप्रबोधनाय, अष्टकर्म्ममूलप्रकृतिसंशोधनाय, केवलालोकावलोकितसकललोकाय, जन्मजरामरणविनाशनाय सुमंगलाय, कृतमंगलाय, प्रसीद भगवन् इह चंदनेनामृताश्रवणं कुरु २ स्वाहा ॥” इस मंत्र करके चंदनको मंत्रके हृदयमें जिनोपवीतरूप, कटिमें मेखलारूप और ललाटमें तिलकरूप, रेखाकरे, तदपीछे उपनेय " नमोस्तु २” ऐसें कहता हुआ, गुरुके चरणोंमें पडके खडा होके हाथ जोडके ऐसें कहै . । ३५७ For Private And Personal 77 I “ ॥ भगवन् वर्णरहितोऽस्मि । आचाररहितोऽस्मि । मंत्ररहितोऽस्मि । गुणरहितोऽस्मि । धर्मरहितोऽस्मि । शौचरहितोऽस्मि । ब्रह्मरहितोऽस्मि । देवर्षिपितृतिथिकर्म्मसु नियोजय मां ॥ " |
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy