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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पञ्चदशस्तम्भः। दयः। ततः शांतिः पुष्टिः तुष्टिर्वृदिर्ऋद्धिः कांतिः सनातनी अर्ह ॐ॥" इस वेदमंत्रको आठवार पढता हुआ, गर्भवंतीको अभिषेचन करे। तदपीछे गर्भवंती आसनसें ऊठके सर्वजातिके आठ २ फल, वर्णरूप्यमयी मुद्रा आठ, प्रणाम (नमस्कार) पूर्वक जिनप्रतिमाके आगे ढोवे.। तदपीछे गुरुके चरणोंको नमस्कार करके, दो वस्त्र, सोनेरूपेकी आठ मुद्रा, और तंबोलसहित आठ क्रमुक गुरुको देवे. । तदपीछे धर्मागार (पोषधशाला) में जाकर साधुयोंको वंदना नमस्कार करे, और साधुयोंको यथाशक्तिसें शुद्ध अन्न वस्त्र पात्र देवे.। कुलवृद्धोंको नमस्कार करे. ॥ इति पुंसवनसंस्कारविधिः ॥ तदपीछे खकुलाचारकरके कुलदेवतादिपूजन जानना.॥ पंचामृत १, स्नात्रवस्तु २, स्त्रीके नवीन वस्त्र ३, नवीन वस्त्रयुगल ४, स्वर्णकी आठ मुद्रा ५, रूपेकी आठ मुद्रा ६, सोनेकी ८ और रूपेकी ८ एवं षोडश (१६) मुद्रा और ७, फलकी जाति ८, कुशा९, तांबूल १०, सुगंध पदार्थ ११, पुष्प १२, नैवेद्य १३, सधवा स्त्रीयां १४, गीतमंगल १५, इतनी वस्तु पुंसवनसंस्कारमें चाहिये. ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धपुंसवनसंस्कारकीर्तननामद्वितीयोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसुरिकृतो बालाववोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं चतुदेशस्तम्भः ॥२॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्वनिर्णयप्रासादग्रन्थे द्वितीयपुंसवनसंस्कारवर्णनो नाम चतुर्दशस्तम्भः ॥ १४ ॥ ॥अथपञ्चदशस्तम्भारम्भः॥ अथ पंचदश स्तंभमें जन्मसंस्कारनामा तृतीय संस्कारका वर्णन करते हैं ॥ .. जन्मसमय हुए, गुरु, ज्योतिषिकसहित, सूतिकागृहके निकट गृहमें एकांतस्थानमें जहां रौला न सुनाइ देवे, स्त्री, बाल, पशु, जहां न आवे, For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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