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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३३२ तत्त्वनिर्णयप्रासादतहां घटिकापात्र (घडी-कलाक) सहित उपयोगसहित चित्तवाला होकर, परमेष्ठिजापमें तत्पर हुआ थका रहे.। यहां पहिलां तिथि वार नक्षत्रादि देखना न चाहिये क्योंकि, यह जीव कर्म और कालके अधीन है.॥ यतः ॥ जन्म मृत्युईनं दौस्थ्यं स्वस्वकाले प्रवर्तते ॥ तदस्मिन् क्रियतेहंत चेतचिंता कथं त्वया॥१॥ उक्तं चागमे श्रीवर्द्धमानस्वामिवाक्यम् ॥ गाथा ॥ .. समयं जम्मणकालं कालं मरणस्स कमइ सुरनाह ॥ संपत्तजोगहत्ती न अइसया विअराएहिं ॥२॥ इसवास्ते बालकके जन्म हुए समीप रहा हुआ गुरु, ज्योतिषिको जन्मक्षण जाननेके वास्ते आज्ञा करे. तिसने भी सम्यग् जन्मकाल, करगोचर करके धारण करना तदपीछे बालकके पिता, पितव्य (चाचा-काका ) पितामहोनें, नाल विना छेद्यां गुरुका, और ज्योतिषिका बहुत वस्त्र आभूषणवित्तादिसें पूजन करना. क्योंकि, नाल छेद्यांपीछे सूतक हो जाता है. 1 गुरु बालकके पिता, पितामह ( दादा ), आदिककों आशीर्वाद देवे। यथा ॥ “ॐ अर्ह कुलं वो वर्द्धतां । संतु शतशः पुत्रप्रपौत्राः । अक्षीणमस्त्वायुर्द्धनं यशः च अर्ह ॐ ॥” इति वेदाशीः ॥ तथा ।वृत्तम् ॥ यो मेरुशंगे त्रिदशाधिनाथैदैत्याधिनाथैस्सपरिच्छदैश्च ॥ कुंभामृतैः संस्नपितस्सदेव आद्यो विदध्यात् कुलवईनंच ॥१॥ ज्योतिषिकाशीर्वादो यथा शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ आदित्यो रजनीपतिः क्षितिसुतः सौम्यस्तथा वाक्पतिः श्रुक्रः सूर्यसतो विधुतुदशिखिश्रेष्ठा ग्रहाः पातु वः ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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