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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवमस्तम्भः। २५१ व्युत्पत्तिकरके पृथिवीका भूमि, नाम हुआ.। तिस भूमिको गीली देखके सुकानेकेलिये चार दिशाओंको रच कर प्रजापति अपने संकल्पसे उत्पन्न हुए पवनको चलाता भया, शुष्क होती हुई तिस भूमिको प्रजापति सूक्ष्म पाषाण करके दृढ करता भया, दृढ करके 'नोऽस्माकं शं सुखमभूदित्युवाच' हमको सुख भया ऐसे उच्चार करा, तिस कारणसें 'शं सुखं कृतं आभिः' इस व्युत्पत्तिकरके शर्करा (कंकरी) यह नाम हुआ. ॥ इत्यादि। [समीक्षा]-सृष्टिसे पहिले कुछ भी नहीं था, एक केवल जलमात्रही था, तब प्रजापतिने जगत् उत्पन्न करनेके निमित्त विचार करा कि, यह जगत् कैसे उत्पन्न होवे? इत्यादि-प्रथम तो इस लेखसें प्रजापति अज्ञानी असर्वज्ञ सिद्ध हुआ. क्योंकि, विचार करना यह असर्वज्ञका लक्षण है. सर्वज्ञको तो,सर्व पदार्थ हस्तस्थामलकवत् प्रत्यक्ष भासमान होता है, तो फेर सर्वज्ञ होके प्रजापतिमें विचार करना कैसे संभव होवे ? तथा सृष्टिसे पहिले यदि कुछ भी नही था तो, तुमारा माना जल कहां रहा था ? विना आकाश पृथिवी आदिके जल कबी भी नही ठहर सक्ता है. पूर्वपक्षः-वो पृथिवी अन्य थी, और यह दृश्यमान अन्य है. क्योंकि, श्रुतिमें लिखा है कि, गोता लगानेसें प्रजापति नीचेकी पृथिवीको प्राप्त हुआ, यदि दूसरी पृथिवी न होती तो, किसको प्राप्त होता ? और किसमेसें मृतिका ले आता ? इसवास्ते सिद्ध हुआ कि, नीचे भूमि थी, जब भूमि हुई तो जलके रहने में क्या बाध है ? उत्तरपक्षः-हे मित्र! हमको तो कुछ भी बाध नहीं है. क्योंकि, हम तो ऐसे असत् कथनको कवी भी मानना नहीं चाहते हैं. परंतु आप लोग मनःकल्पित कल्पना करके पूर्वोक्त कथनको सत्य करना चाहते हो, इसीवास्ते वदतोव्याघातदूषणरूप असवार आपके तर्फ दृष्टि करता है. क्योंकि, तुमने प्रथम कहा कि, जलके विना और कुछ भी नही था, और उसी समय पृथिवी तो तुमनेही सिद्ध करी, तो फेर ऐसें कहना चाहिये था कि, “सलिलं भूमि चासीत् ” जल और भूमि यह दो पदार्थ सृष्टिसे पहिले विद्यमान थे. ऐसा कहनेसें भी छूट नही सक्ते हो. क्यों For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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