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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २५० तत्त्वनिर्णयप्रासादआपो वा इदमग्रे सलिलमासीत्।तेन प्रजापतिरश्राम्यत्॥५॥ कथामिद स्यादिति । सो ऽपश्यत् पुष्करपूर्ण तिष्ठत् । सोऽमन्यत्।अस्ति वै तत्।यस्मिन्निदमधितिष्ठतीति।स वराहो रूपं कृत्वोपन्यमजत। सपृथिवीमधआर्च्छत्। तस्या उपहत्योदमजात्। तत्पुष्करपणे प्रथयत् । यदप्रथयत् ॥६॥तत् पृथिव्यैपृथिवित्वं । अभद्रा इदमिति' तद्भूम्यै भूमित्वं । तां दिशोनुवातः समवहत् । तां शर्कराभिरदृ हत्। शं वै नो' ऽभूदिति । तच्छर्कराणा शर्करत्वं ॥ इत्यादि। तैत्तिरीयत्रा० १ अष्ट० १॥ अध्या० ३।अनु०॥ भाषार्थः-(इदम्) यह जो कुछ गिरिनदीसमुद्रादिक स्थावर, और मनुष्यगवादिक जंगम दिखलाइ देता है, सो (अग्रे) स्मृष्टिसें पूर्व नही था, किंतु केवल (सलिलं आसीत् ) जलमात्रही था. तब (प्रजापतिः) ब्रह्मा (तेन) जगत्सृजननिमित्तकरके (अश्राम्यत्) पर्यालोचनरूप तप करता भया, कैसें यह जगत् होवे अर्थात् रचा जाय ऐसा विचार करके तिस पाणीके मध्यमें दीर्घनालके अग्रभागमें स्थित एक पद्म-कमलके पत्रको देखता भया; तिसको देखके प्रजापति मनमें शोचता-विचारकरता भया कि, जिस आधारमें यह नालसहित पद्मपत्र आश्रित हो कर स्थित है-रहा है सो वस्तु कुछक अवश्यमेव नीचे है. ऐसे विचार कर प्रजापति वराहरूप हो कर तिस पद्मपत्रनालके समीपही जलमें गोता लगाता भया, गोता लगानेसें प्रजापति नीचे भूमिको प्राप्त हुआ. तिस भूमिमेंसें कितनीक गीली मृत्तिका अपनी दाढाके अग्रभागमें रख कर पाणीके ऊपर उछलता भया, ऊपरको आकर तिस मृत्तिकाको तिस कमलके पत्रके ऊपर फैलाता भया, जिसवास्ते यह मृत्तिका फैलाई, (प्रथिता) तिसवास्ते इसका पृथिवी नाम रक्खा गया. तदपीछे संतुष्ट होके यह स्थावरजंगमका आधारभूत स्थान हुआ, ऐसा कथन करता हुआ; तिसवास्तं भवति इस. ऊपरको आकर मृत्तिका कला होके यह स्थाति इस. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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