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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २५२ तत्त्वनिर्णयप्रासादकि, फेर वराहावतार धारणकरके मृत्तिका ले आया, यह कैसें सिद्ध होगा? याद कहोंगे कि, यह जो दृश्यमान पृथिवी है, सो प्रथम नही थी, प्रजापतिने नीचेकी मृत्तिकामेंसें लायके बनाई है; तो जिस भूमिमेंसें प्रजापति वराहरूपकरके मृत्तिका ले आया, वो भूमि किसकी बनाइ हुई थी ? और वो जगत्में है कि, जगत्से बाहेर है? तथा यजुर्वेदमें लिखा है कि, प्रलयदशामें जल भी नहीं था, और इसश्रुतिसें जल भूमि कमलपत्र आकाशादि सिद्ध होते हैं; यह परस्पर विरुद्व है. प्रजापति विचार करके एक नालसहित कमलपत्रको देखता भया. इति-जब केवल जलही था तो यह नालसहित कमल पत्र कहांसें निकल आया? ___ कमलपत्रको देखके प्रजापतिने विचार करा कि, जिसके आधार यह नालसहित कमलपत्र स्थित है, वो कुछ वस्तु होना चाहिये? ऐसा विचार कर कमलपत्रके समीपही गोता लगाता भया, गोता लगानेसे नीचे भूमिको प्राप्त हुआ, तिस भूमिमेंसें गीली मृत्तिका अपनी दाढामें रखके पाणीके ऊपर आकर कमलपत्रके ऊपर सुकानेकेलिये मृत्तिकाको फैलाई दीनी. इत्यादि-इससे तो प्रजापतिके असर्वज्ञ होनेमें कुछ भी संदेह नहीं है. क्योंकि, प्रजापतिने अनुमानसें विचारा कि, यह कुछ वस्तु होना चाहिये. परंतु प्रत्यक्ष नहीं देखा. यदि प्रत्यक्ष देखता तो, गोता न लगाता, विना गोतेके लगायेही वहांसें मृत्तिका काढ लेता. क्योंकि, वो तो सर्व शक्तिमान् था. तथा यह दृश्यमान सारी पृथिवी कमलपत्रके ऊपर सुकाई तो, वो कमलपत्र कितनाक बडा था ? पृथिवीसें तो अधिकही बडा होना चाहिये कि, जिसके ऊपर सारी पृथिवी फैलाई गई. भला नीचेसें तो वराहरूप करके प्रजापति मृत्तिका ले आये, परंतु सुकाये पीछे कमलपत्रके ऊपरसें किसरूप करके प्रजापतिने पृथिवी उचक लीनी ? और वो कमलपत्र कहां गया ? क्योंकि, उस कमलपत्रका तो कबी भी नाश न होना चाहिये; प्रलय दशामें भी विद्यमान होनेसें, ईश्वरवत्. जब कमलपत्रके ऊपर फैलानेसें भी नही सुकी, तब प्रजापतिने दिशा और वायुका संकल्प करा जिससें वायु प्रचलित हुआ, तब सुकती हुई For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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