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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 325 . इसके बाद आप इन्दौर चले गये। 1946 में रामस्वरूप जी जारखी, प्रतापगढ़ में प्रजामण्डल की स्थापना हुई और तिरंगा जिला-आगरा (उ0 प्र0) के झण्डा हर घर पर लहराने लगा। जब आपने सुना कि निवासी थे। आपका जन्म 'प्रजामण्डल की स्थापना हो गई है तब आप 16 वर्ष एक जमींदार परिवार में के बाद प्रतापगढ़ वापिस गये। जनता ने आपका जोरदार हुआ था। परन्तु बचपन से स्वागत किया और जुलूस निकाला। रात्रि को एक विराट ही राष्ट्रीय भावनायें कूट-कूट सभा हुई जिसमें सभापति पद से आपने घोषणा की कर भरी हुई थीं। हिन्दी उर्दू कि 'मैंने जो प्रण किया था वह आज पूरा हो गया।' व अंग्रेजी में आपकी समान योग्यता थी। आप 2 अक्टूबर 1943 को आपके सभापतित्व में आजाद कवि-लेखक के साथ पत्रकारिता से जुड़े रहे। 'भारतीय' मैदान में गाँधी जयन्ती मनायी गयी थी।' जी ने 'पद्मावती संदेश' (आगरा), 'वीरभारत' आ)-(1) जै0 स0 रा0 अ0, पृष्ठ-67 (अलीगढ़ व जलेसर), 'ग्राम्य जीवन' (आगरा), श्री रामस्वरूप जैन 'अग्रवाल हितैषी' (देहली), 'देवेन्द्र' (अजिताश्रम लखनऊ) आदि पत्रों का सम्पादन किया था। स्व० खौरगढ़, जिला- मैनपुरी (उ0प्र0) के श्री रामस्वरूप जैन, पुत्र-श्री छोटे लाल, जैन का जन्म 11 __पं0 कृष्णदत्त जी पालीवाल ने लखनऊ से 'दैनिक केसरी' का प्रकाशन किया था, तब आपको प्रबन्ध अक्टूबर 1917 को हुआ। सम्पादक नियुक्त किया था। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय आप अपने मण्डल के 1942 के आन्दोलन में सहयोग देने की शङ्का मंत्री थे। उस समय आप के कारण आपको गिरफ्तार कर दो माह सेन्ट्रल जेल फरार हो गये और इधर आगरा में नजरबंद रखा गया था। आप बेसवां किला उधर घूमते रहे, पुलिस ( (अलीगढ़) रियासत के वर्षों मैंनेजर रहे थे। आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 0 ध0, आपकी तलाश में रही अन्त पृष्ठ-92 (3) अमृत, पृष्ठ-25 (4) श्री पन्नालाल जी 'सरल' द्वारा में जनवरी 1943 में आपको फिरोजाबाद में गिरफ्तार प्रेषित परिचय कर लगभग एक वर्ष 6 माह नजरबंद रखा गया। जेल श्री रायचंद नागड़ा में ही आपने 'मानव जीवन की सफलता' पुस्तक का 'खण्डवा जिले के गांधी' कहे जाने वाले तथा लेखन किया जो बाद में प्रकाशित भी हुई। आजादी । 'भाईजी' उपनाम से विख्यात श्री रायचंद नागड़ा का के बाद आप ग्राम पंचायत के सरपंच आदि अनेक - जन्म अपने ननिहाल पाचोरा पदों पर रहे। 1963 में आपने विशाल सिद्धचक्र | में 23 जून 1904 को हुआ। मण्डल विधान का आयोजन कराया था। वहीं रहकर आपने गुजराती आ0- (1) जै0 स0रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 0 धo, पृष्ठ-92 (3) जै) स0 वृ0 इ0, पृष्ठ-627 (4) स्व0 प0 . का अभ्यास किया। आपके पूर्वजों के सन्दर्भ में कहा श्री रामस्वरूप 'भारतीय' जाता है कि 1880 के 'भारतीय' उपनाम से विख्यात, राष्ट्रभक्ति और LMAN - आसपास सुदूर कच्छ प्रान्त से पत्रकारिता को ही अपने जीवन का ध्येय बनाने वाले दो किशोर वय के भाई पदमसी एवं पीताम्बर अपनी For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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