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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 258 - स्वतंत्रता संग्राम में जैन बालचंद को विशेष हिदायतें देकर एक कोठे में बंद पंडित बेचरदास जीवराज डोसी कर दिया गया, ताकि बालचंद सत्याग्रह में न पहुँच बीसवीं सदी के जैन दर्शन एवं प्राकृत के प्रख्यात सकें और न ही गिरफ्तार होकर अंग्रेजों की यातनायें विद्वान् श्रद्धेय पंडित बेचरदास डोसी का जन्म सहें। परिवार के लोग जैसे ही दैनिक कार्यों में लगे वल्लभीपुर में 1889 ई0 में हुआ। दस वर्ष की आयु आप कमरे के ऊपर की लकड़ी एवं पत्थरों से बनी में ही पिता का देहांत हो गया। माँ मेहनत-मजदूरी करके छत उधंड़कर साथी सत्याग्रहियों से जा मिले और घर चलातीं। आप भी माँ का हाथ बंटाने उनके साथ नमक बनाकर कानून तोड़ा। तिरंगा झंडा लेकर 'वन्दे जाते। तभी भाग्य ने पलटा खाया। गुजरात के प्रसिद्ध मातरम' 'इंकलाब जिन्दाबाद' आदि नारों का जयघोष जैन मुनि श्री विजय धर्म सूरि की नजर आप पर पडी करते हुए गिरफ्तारी दी। जब परिवार वालों को खबर और आप जैन दर्शन के शिक्षण के लिये चुन लिये लगी कि 'आपके बालचंद गिरफ्तार हो गये हैं' तब गये। पालीताना में कुछ महीने पढ़ने के बाद आप 'उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वे तो कमरे में बंद वाराणसी चले गए, वहां जैन दर्शन एवं प्राकृत का था बाद में जब कमरे में देखा तो विश्वास हआ। विशद अध्ययन किया। वाराणसी में अध्ययनरत रहते आपको ? माह का सश्रम कारावास सागर जेल में हुए आपने 'श्री यशोविजय जैन सीरीज' का सम्पादन मिला। किया। इसके द्वारा प्रकाशित न्याय और व्याकरण की आ) (1) मा प्रा. स्व) सै), भाग-2. पष्ठ.45 पुस्तक कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के पाठयक्रम में सम्मिलित की गयीं। यहीं से आपने 1913 में न्यायतीर्थ SRO दी), पृष्ट-1 (3) स्व) प। और 1914 में व्याकरण तीर्थ की परीक्षायें उत्तीर्ण की। डॉ० बाहुबलकुमार जैन इसके बाद आप श्रीलंका गये और पाली भाषा और सम्प्रति न्यूयार्क (अमेरिका) प्रवासी प्रसिद्ध बुद्धत्व का विशेष अध्ययन किया। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.) बाहुबलकुमार जैन का जन्म इन्हीं दिनों महात्मा गांधी के क्रान्तिकारी विचारों आषाढ कृष्णा 5 संवत् 1991 का प्रभाव आप पर पड़ा। 1919 में बम्बई नगर में (सन् 1934) में बरेली, 'जैन शास्त्रों के भ्रष्ट रूपान्तरों का समाज पर जिला-रायसेन (म0प्र0) में नुकसानकारक प्रभाव' विषय पर आपके व्याख्यानों ने हुआ। आपके पिता का नाम जैन समाज में हलचल मचा दी। धर्म के नाम पर चल श्री लक्ष्मीचंद जैन एवं माता रहे पाखण्ड के भंडाफोड़ से महन्त व आचार्य बौखला का नाम चेनाबाई था। गए और आपको समाज बहिष्कृत कर दिया गया तथा J एम0डी0 आदि अनेक 'खतरनाक', 'परम्पराधारी' एवं 'नास्तिक' जैसी गालियां चिकित्सक उपाधियों के धारक डॉ0 जैन ने 14 वर्ष दी गईं। परन्तु आप जैन युवकों एवं विचारकों के चेहते की उम्र में भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन' में भाग बन गए। बहुतों ने उन व्याख्यानों से प्रेरणा ग्रहण की। लिया, फलत: गिरफ्तार कर 6 जनवरी 1949 को परन्तु पंडित जी ने हार नहीं मानी। मेन्टल जेल भोपाल में भेज दिये गये, जहाँ लगभग 1921 में आप गांधी जी द्वारा स्थापित 'पुरातत्त्व 37 दिन आपको यातनायें भोगनी पड़ी। मन्दिर' में सम्मिलित हो गये और 40 सुखलाल आ) (1) म) प्र) स्वा। सं), भाग-5, पृष्ठ-86 संघवी के साथ प्रसिद्ध ग्रन्थ 'टीका सन्मति तर्क' का - For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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