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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 257 अन्य नजरबन्द कैदियों के साथ बैरक में भेज दिया अपने देश के इतिहास की उस दहलीज पर खड़े हैं गया। इस बैरक में हम सभी काशी विश्वविद्यालय जहां स्वर्ग से वे लोग हमारे करम- धरम पर हंस रहे के छात्र थे। बैरक के भीतर ही एक अलग काल-कोठरी हैं मानों क्रान्ति हमसे रूठकर हमें छोड़कर चली गई थी जिसमें फांसी के सजायाफ्ता कैदी रखे जाते थे। है। हम राह छोड़कर अंधेरे में भटक रहे हैं। तूफानी आठ माह बाद मुझे जिला जेल से बनारस के और अंधेरी रात में इस नैय्या पार लगाने के लिये अब केन्द्रीय कारागार भेज दिया गया। यहाँ मेरे वरिष्ठ और एक गांधी की जरूरत है।' सहयोगी श्री खशालचन्द जी गोरावाला भी थे। विद्यालय आ)- (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-3, पृष्ठ-186 (2) के अन्य कनिष्ठ साथियों में श्री रतन पहाडी भी थे। ५) जी इ0, पृष्ठ-525 (3) स्व0 प) (4) जै0 स0 रा0 अ0 बनारस के अन्य क्रान्तिकारी भी यहीं रखे गये थे। श्री बालचंद जैन इसी जेल में विशुद्ध गांधीवादी और सर्वोदयी भी थे! ग्राम-बलेह, जिला-सागर (म0प्र0) के श्री यहीं मैंने श्री राजनारायण को बैरक के बाहर एक बालचंद जैन, पुत्र-श्री परमानंद जैन ने असहयोग चबूतरे पर रामायण का सस्वर पाठ करते सुना था। आंदोलन, जंगल सत्याग्रह एवं भारत छोड़ो आन्दोलन यहां समय-समय पर कविता-पाठ, वाद-विवाद, में भाग लिया। 16 मई 1941 से 27 मई 1941 समूह-चिन्तन आदि भी हुआ करते थे। मैं अपने स्वभाव तक का कारावास भोगकर आपने देश की आजादी के अनुसार यहां भी एकान्त पसन्द करता था, जिसके का मार्ग प्रशस्त किया। कारण लोग मुझे क्रान्तिकारी समझते थे। आ)- (1) म) प्रा) स्वर) सै0, भाग-2, पृष्ठ--46 (2) आ) दो0, पृष्ठ-63 उपरोक्त कारागार से एक वर्ष बाद मुझे नैनी (इलाहाबाद) के केन्द्रीय कारागार में स्थानान्तरित कर श्री बालचंद जैन दिया गया। इस जेल में काकोरी कांड के बंदी भी श्री बालचंद जैन, पुत्र-श्री फूलचंद जैन का एक पिंजरे जैसी कोठरी में कैद थे, यहां मुझे नजरबंद जन्म 1912 में खुरई, जिला-सागर (म0प्र0) में कैदियों की बैरक में रखा गया, इस बैरक में श्री लाल हुआ। आपने शिक्षा नाम मात्र बहादुर शास्त्री, श्री कमलापति त्रिपाठी, श्री राजाराम की प्राप्त की लेकिन लाखों शास्त्री आदि नजरबंद थे। यहीं पं0 जवाहर लाल नेहरू का हिसाब केवल मुँहजबानी एक दिन के लिये रफी साहब के साथ ही अन्य नेताओं ही करते हैं। शेर की गर्जन से परामर्श के लिये रुके थे। जैसी आवाज आज भी नैनी की केन्द्रीय जेल से 1945 में रिहा होने बरकरार है। आप चिरकुमार के बाद हम सब सेनानियों का इलाहाबाद में राजर्षि हैं। संयमित जीवन व्यतीत पुरुषोत्तम दास टण्डन की अध्यक्षता में स्वागत किया करना आपकी दिनचर्या है। भोजन भी आप एक बार गया। इधर मुझे पता चला कि मुझे बनारस से लेते हैं। जिला-बदर कर दिया गया है, फिर भी मैंने किसी 1930 की बात है, कई दिनों पूर्व से ही चर्चा तरह बनारस में ही रहकर अपना अध्ययन पूर्ण किया।' थी कि फलां दिन सत्याग्रहियों द्वारा नमक कानून का मध्यप्रदेश के एक महाविद्यालय के प्राचार्य पद उल्लंघन होगा, कानून तोड़ा जायेगा। अतः एकलौती से सेवानिवृत डॉ.) साहब का कहना है-'आज तो हम संतान होने के कारण परिवार जनों द्वारा बालक For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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