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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 250 सम्पादन किया। इसके बाद आपने गुजराती में अन्य आपको बैठना पड़ा; परन्तु आप पढ़ते रहे। हाईस्कूल आगमों का अनुवाद किया। की परीक्षा में जयपुर में आपने सर्वोच्च अङ्क प्राप्त ___गांधी जी की दाण्डी यात्रा के दौरान आपने किए। अतः आपको 'ग्लासी गोल्डमेडल' प्रदान प्रसिद्ध समाचार पत्र 'नवजीवन' का सम्पादन किया किया गया। किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर और ) महीनों के लिए जेल गये। जेल से बाहर था। पिता की जब 'अमानत में खयानत' के मुकदमे आने के बाद 1936 तक ब्रिटिश शासन के राज्य में गिरफ्तार होने की नौबत आई तो माँ के गहने और क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सके। गुजरात में कांग्रेस अपना गोल्डमेडल बेचकर साहूकार की भरपाई सरकार के बनने के बाद ही आप वापिस आ सके। करनी पड़ी। वे सभी वर्ष आपने अत्यधिक वित्तीय परेशानियों में आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद गुजारे। बाद में आप अहमदाबाद के एल0डी0 आर्ट्स एवं साहित्यरत्न परीक्षाएं उत्तीर्ण की। तभी आपका कॉलेज में प्राकृत के व्याख्याता बने। वहाँ से सेवानिवृत सम्पर्क श्री कंवरलाल बापना से हुआ, जो प्रतिभावान हान के बाद अवैतनिक प्रफिसर के रूप में एल0 वकील थे एवं आजादी के बाद राजस्थान उच्च डी) इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, अहमदाबाद को न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश बने थे। उनके भी आपने अपनी सेवायें दीं। 1963 में केन्द्रीय सहयोग से सिंघी जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सरकार न सस्कृत के विशिष्ट विद्वान् का प्रशस्ति पढने चले गये। यहाँ उनकी भेंट हिन्दी के प्रसिद्ध पत्र एवं 5000 रु की वार्षिक पेंशन देकर आपको उपन्यासकार श्री प्रेमचंद से हुई जिनकी प्रेरणा से सम्मानित किया। आपने 50 से अधिक पुस्तकों का सिंघी जी ने गद्य गीत लिखने आरम्भ किये जो 'हंस' सजन एवं सम्पादन किया है। आपका 1974 में में प्रकाशित हा 'वीर निर्वाण भारती' द्वारा 2500/. के पुरस्कार से प्रेमचन्द की संवदेना एवं उदात्त मूल्यों के प्रति सम्मानित और अभिनन्दित किया गया था। अक्टूबर आस्था ने सिंघी जी के जीवन की दिशा निर्धारित 1982 में आपका निधन हो गया। कर दी। बनारस से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर आप आ)- (!) Progressive Jains, P. 64 (2) इ) कलकत्ता आ गए। यहाँ आकर आपकी प्रतिभा 0 ओ), खण्ड -2. पृष्ठ--410-4।। चमक उठी, क्षेत्र विस्तृत हो गया, अनेक सामाजिक श्री भंवरमल सिंघी नेताओं और संस्थाओं (विशेषत: मारवाडी सम्मेलन) नये समाज के स्वप्नदृष्टा, कवि, चिन्तक, से आप जुड़े। 1937 में आपके गद्यकाव्यों का सामाजिक एवं धार्मिक क्रांतियों के प्रणेता एवं कलाकार संकलन 'वेदना' प्रकाशित हुआ। डॉ0 सुनीति कुमार श्री भंवरमल सिंघी का बहुआयामी संघर्षशील व्यक्तित्व चटर्जी ने इस काव्य- ग्रंथ की भूमिका लिखी थी। जैनों के लिए ही नहीं, समस्त भारतीय समाज के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ 'हिन्दी साहित्य लिए प्रेरणास्रोत है। सिंघी जी का जन्म 1914 ई) में का इतिहास' में सिंघी जी को गद्य गीतकार माना है जोधपुर (राज)) ने निकट बडू ग्राम की एक झोपड़ी (उनतीसवां संस्करण, पृष्ठ-304)। में हुआ। मिडिल की परीक्षा में आपको सर्वोच्च पत्रकारिता के क्षेत्र में सिंघी जी अग्रणी रहे, आपने अंक मिले किन्तु घर की हालत पतली थी। पहले 'तरुण जैन' पत्र का सम्पादन एवं प्रकाशन किया और बिसातखाने की और फिर पान की दुकान पर समाज को नवीन दिशा दी। 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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