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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 235 उसका दूसरा उदाहरण दुर्लभ है। वे अभिनन्दनीय और अस्पताल भेज दिया गया, वहाँ खाने में दूध व दलिया अभिवन्दनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी हैं। लगभग 91 दिया जाता था। दूध में मिलावट होने से आप उसे पी वार्य के जीवन काल में उन्होंने जैन दर्शन व साहित्य नहीं पाते थे तथा बगल में पड़े नाई को दे देते थे, की अनुपम सेवा की तथा (6) पुस्तकों/ग्रन्थों का प्रणयन/ अतः आप भूख से पीड़ित रहने लगे। नाई से जब सम्पादन, अनुवाद किया। यह दशा नहीं देखी गई तो वह किसी अफसर की अनेक सामाजिक आन्दोलनों के जनक पण्डित सेवा करके दो रोटी व करेले की सब्जी ले आया और जी ने खजुरिया, इन्दौर, साढूमल, मुरैना आदि के आपसे कहा-'आपके लिए ही हम लाये हैं। आप खा प्रसिद्ध जैन विद्यालयों में शिक्षा पाई। दस्सा पूजा लो।' उस अवस्था में भी आपने मना करते हुए कहाअधिकार. हरिजन मंदिर प्रवेश, गजरथ महोत्सवों में 'तुमने इनको प्राप्त करने में श्रम किया है-- इसलिए धर्म के नाम पर किये जा रहे अपव्यय का विरोध तुम ही इन्हें खाओ।' अन्त में वह रोने लगा. तब दोनों आदि उनकं सामाजिक आन्दोलन थे। ने बांटकर वह खाना खाया। खात हुए आपने कहा-- ___पं) जी का राजनैतिक जीवन 1920 से शुरू इस चहार दीवारी के भीतर तो हम तुम 'भाई - भाई हुआ, जब वे सादमल में विद्यार्थी थे। वहां वे ग्रामीणों हैं, किन्तु जेल से बाहर जाने पर हम जैन और तुम का एकत्र कर भाषण देने लगे, अंग्रेज अफसरों की नाई। फिर मैं तुम्हारे हाथ की नहीं खाऊँगा।' यह घटना ओर से विद्यालय बन्द कराने की नौबत आ गई। अतः 194। की है। आपने 'मुट्टी फण्ड' की स्थापना की और अनाज इकट्ठा - इसके बाद आप बनारस चले गये और जैन कर उसे गरीबों में वितरित करते रहने का कार्य प्रारम्भ सिद्धान्त के प्रौढ और प्रसिद्ध ग्रन्थ कषायपाहट के किया। सम्पादन में लग गये। आजादी के बाद आपने 1928 के लगभग आप बनारस से बीना राजनैतिक जीवन छोड़ दिया और पूर्ण रूप से (म)प्र()) आ गये और कांग्रेस के आन्दोलनों में सक्रिय साहित्य-साधना में लग गये। सहयाग दन लग। आपने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार प्रसिद्ध पत्रकार डॉ0 नेमीचंद जैन, इंदौर को दिये किया, इसके लिए आपने एक युक्ति यह निकाली कि अपने एक इन्टरव्य में आपने स्वयं स्वीकार किया है _ 'मंदिर में देशी वस्त्रों को रखवा देते हैं, जो भी विदेशी कि - 'मैं शुरू से क्रान्तिकारी हुँ।' साडी पहिनकर आयें यहां उतार कर देशी साड़ी पहिन जायें।' एक विदशी विद्वान् ने जन आपसे प्रश्न किया आप बीना, सागर, सोलापुर तथा अमरावती जिला कि जैन धर्म के माथ ही सभी धर्मों में हिंसा. झट, कांग्रेस के पदाधिकारी रह। जब आपक साल श्रारी आदि का निषिद बताया है फिर एसी कोन मी कलचंद का सत्याग्रह क कारण ललितपुर जल भंज मज जात है, जिससे जन धर्म अन्य धर्मों से अलग समझा दिया गया और मकदम को गनवाइ हतु आप वीना जाय। आपन उत्तर दिया- 'व्यक्ति स्वातंत्र्य जन ललितपर गय तन्त्र आपका भी वहाँ गिरफ्तार कर मका उद्देश्य है और स्वावलम्बन उसकी प्राप्ति का लिया गया। आपका । माह का कद तथा 100/- ) माग है।' जमाना किया गया। आप कच्ची कंद में 19 दिन तथा 40 जी की प्रसिद्ध और क्रान्तिकारी रचना 'वण झांसी । उ0प्र0) जल म । माह ।। दिन रहे। जाति और धर्म' भारतीय ज्ञानपोठ से प्रकाशित हुई थी। आपकं जेल जीवन की एक घटना है। झांसी आपने अपने जीवन में अनेक संस्थाओं की स्थापना जेल में रहते हुए आप बीमार हा गर्य, अतः जेल से For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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